आज हिंदी दिवस है। इस मौके पर हर साल की तरह कुछ औपचारिक आयोजन होने हैं। उनमें हिंदी को लेकर कुछ विमर्श भी होंगे, जिनमें से अधिकांश शेष वर्ष के लिए पाश्र्व में चले जाएंगे। वास्तव में ऐसे विमर्श में जिस एक मुद्दे पर सर्वाधिक ध्यान केंद्रित होना चाहिए वह है हिंदी को रोजगार की भाषा बनाना। यदि हिंदी रोजी-रोटी की भाषा बन जाए, तो इसका विकास स्वत: ही हो जाएगा। इससे हिंदी के प्रचार-प्रसार में मदद के साथ ही हिंदी को विश्व के कोने-कोने तक भी पहुंचाया जा सकेगा।
क्या हमने कभी गौर किया है कि भारत जैसे हिंदी भाषियों के देश में अंग्रेजी इतनी फल-फूल क्यों रही है जबकि हिंदी बोलने-समझने वालों की तादाद करीब 80 करोड़ से भी अधिक है। इतना ही नहीं, ऐसे संगठन या कंपनी जहां हिंदी भाषा का ही कामकाज हो, वहां भी बिना अंग्रेजी के गुजारा नहीं है। हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी की समझ वाले लोगों का ही चयन होता है। यानी ऐसे युवा जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और उनके पास अंग्रेजी सीखने के साधन उपलब्ध नहीं हैं, उनके लिए निजी संस्थानों में भी रोजगार पाना बहुत बड़ी चुनौती है।
अच्छी और शुद्ध हिंदी सामान्य रोजगार की आवश्यकताओं की फेहरिस्त से बाहर है। हमारे यहां अच्छी अंग्रेजी ही कुशलता के प्रमाण रूप में स्थापित हो गई है। इससे अंग्रेजी और हिंदी के स्तर का पता चलता है। इससे यह भी मालूम पड़ता है कि हम हिंदी के विकास के लिए कितने गंभीर हैं। ऐसे में सरकार को ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है जिनके माध्यम से हिंदी में प्रवीण लोगों को उचित रोजगार मुहैया हो सकें। साथ ही हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हमें अपनी भावी पीढ़ी को हिंदी की महत्ता का अहसास कराना होगा।
मौजूदा वक्त में सरकार ने हिंदी के लिए कोशिशें भी की हैं। लेकिन इस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है जिसके लिए सरकार को हर पहलू पर गंभीर होना होगा। समझना होगा कि जब हम किसी भाषा को खूब बोलते हैं, खूब पढ़ते हैं तो वह भाषा जिंदा रहती है, लेकिन जैसे ही हम किसी भाषा को बोलना छोड़ देते हैं, उसे नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं, तो वह भाषा धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। हमें हिंदी के साथ यह स्थिति नहीं बनने देनी होगी।
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