आज कई जगह पर जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। आज के दिन पूरे दिन लोग व्रत करेंगे और रात में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद ही अपने व्रत को खोलेंगे। श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव की धूम मथुरा और वृंदावन के साथ विदेशों में भी देखने को मिल रही है। श्रीकृष्ण की जन्म की पूजा काफी विशेष तरीके से होती है। इसमें कई खास चीजें होती हैं जिनमें खीरा विशेष महत्व रखता है। यूपी व बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी पूजा स्थान पर खीरा रखते हैं। आखिर खीरे का महत्व क्या है। आइए जानते हैं।.

जन्म का प्रतीक होता है खीरा
जन्माष्टमी का त्योहार वैसे 18 और 19 अगस्त को मनाने को लेकर थोड़ी दुविधा थी। लेकिन कुछ ने 18 तो कुछ आज यानी 19 अगस्त को मनाएंगे। श्रीकृष्ण की पूजा के समय उनके पास कई विशेष चीजों का होना आवश्यक है। इनमें उनके श्रंगार की चीजों के अलावा माखन, बांसुरी, मोरपंख के अलावा खीरा है। दरअसल, खीरा भगवान कृष्ण के जन्म को दर्शाता है। इसलिए उसे पूजा स्थान पर रखना आवश्यक है। बचपन में तो हम लोगों के बीच एक मान्यता थी कि रात में 12 बजे अचानक ही खीरे में बीच से चीरा लग जाता है। इससे पता चलता था कि कान्हा का जन्म हो चुका है। रात में खीरे का डंठल सिक्के की मदद से काटते हैं जिससे नाल छेदन का संस्कार होता है। इससे पता चलता है कि कान्हा अब देवकी के गर्भ से बाहर आ चुके हैं।
महंगा बिकता है डंठल वाला खीरा
दरअसल, खीरा भी कैसा लें इसकी जानकारी होना बहुत जरूरी है। जन्माष्टमी में खीरे के बिना पूजा नहीं होती इसलिए खीरे को डंठल के साथ ही खरीदना चाहिए। बिना डंठल के खीरे की पूजा नहीं होती है और न ही उसे पूजा में शामिल किया जाता है। इसलिए इस दिन बाजार में डंठल वाले खीरे की मांग बढ़ जाती है और पैसे भी काफी लिए जाते हैं। डंठल वाला खीरा लाकर मंदिर में रखा जाता है और 12 बजे उनके जन्म की खुशियां मनाई जाती है।
GB Singh
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