अमेरिका ने परोक्ष तौर पर यह स्वीकार कर लिया है कि मौजूदा हालात में वह ईरान को लेकर भारत पर ज्यादा दबाव नहीं बना सकता। गुरुवार को नई दिल्ली में हुई टू प्लस टू वार्ता के बाद भारत व ईरान के रिश्तों को लेकर जो पशोपेश था वह भी करीब करीब समाप्त हो गया है।
आने वाले दिनों में भारत ईरान से तेल खरीदना जरुर कम करेगा लेकिन इसे पूरी तरह से बंद नहीं करेगा। इसके साथ ही ईरान से जुड़े ढांचागत परियोजनाओं को भी जारी रखेगा। इस बात के संकेत विदेश मंत्रालय के आला अधिकारियों ने भी दिए हैं और शुक्रवार को वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु के साथ ईरान के सड़क व शहरी विकास मंत्री अब्बास अखौंडी के बीच हुई बातचीत से भी ऐसे ही संकेत मिले हैं।
द्विपक्षीय कारोबार को अगले पांच वर्षो में दोगुना करने का लक्ष्य
अखौंडी भारत के दौरे पर उसी दिन पहुंचे जिस दिन भारत व अमेरिका के विदेश व रक्षा मंत्रियों के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता हो रही थी। शुक्रवार को उनकी वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु से मुलाकात हुई जिसमें द्विपक्षीय कारोबार को अगले पांच वर्षो में दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया। अभी दोनों देशों के बीच तकरीबन 14 अरब डॉलर का कारोबार होता है जिसमें 70 फीसद हिस्सा क्रूड का होता है।
व्यापार घाटा पूरी तरह से ईरान के पक्ष में है लेकिन भारत वहां अपना बाजार बढ़ते हुए देख रहा है। एक दिन पहले उनकी भारत के रोड व शिपिंग मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की और भी दोनो के बीच चाबहार पोर्ट की प्रगति पर चर्चा हुई। भारत की मदद से बन रहे इस पोर्ट संचालन व रख-रखाव का प्रबंधन भारतीय कंपनी को अगले महीने सौंपा जाएगा।
यही नहीं अगले हफ्ते भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता भी होनी है जिसमें भारत की मदद से ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक बनाए जा रहे रेल व सड़क परियोजना पर विमर्श होगा। इस वर्ष के अंत तक ईरान में इंटरनेशलन नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कारीडोर (आइएनएसटीसी) पर भी ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अर्मेनिया, अजरेबेजान, रूस व केंद्रीय एशिया के अन्य देशों के मंत्रियों की बैठक होनी तय है। यह सड़क परियोजना भारतीय बाजार को सीधे केंद्रीय एशियाई देशों व यूरोप से जोड़ेगी।
इसमें भारत सबसे बड़ा हिस्सेदार है और इसे चीन की मौजूदा बेल्ट व रोड इनिसिएटिव (बीआरआइ) परियोजना के भावी जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। अमेरिका और जापान दोनो परियोजना के लिए भारत के साथ होने की बात कहते रहे हैं।