अचानक नहीं हैं ये हार्ट अटैक! रोज की आदतें ही बनाती हैं दिल को बीमार

हार्ट अटैक मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति होती है। इसमें रक्तसंचार बाधित होने के कारण हृदय की मांसपेशियां नष्ट होने लगती हैं अगर समय रहते इसका उपचार नहीं हुआ, तो यह जानलेवा साबित होता है।

डॉ. भुवन चंद्र तिवारी (विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी, डीआरआरएमएल आइएमएस, लखनऊ) बताते हैं कि आमतौर पर इस तरह की समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन अब 20-30 वर्ष के लोगों की इसके कारण मौत हो रही है। इसका सामान्य सा कारण है- धमनियों में जमा होता कोलेस्ट्राल।

यह पहले भी होता था और अब भी हो रहा है, पर एक अंतर है कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या पहले अनियंत्रित नहीं थी, लेकिन अब हमारी खराब जीवनशैली और खानपान की बेलगाम आदत ने इसे गंभीर बना दिया है। जंक फूड का चलन, आरामदेह मगर तनावभरी दिनचर्या, निद्रा की कमी, धूमपान जैसे कारण अब बच्चों की भी धमनियों में कोलेस्ट्रॉल एकत्र कर रहे हैं।

अपने नंबरों को पहचानें दिल रहेगा दुरुस्त
जैसे आप हर वक्त बैंक में अपने जमा रकम के नंबर को जानने को उत्सुक रहते हैं, उसी तरह अपनी सेहत के नंबरों को भी जानना आवश्यक है। जैसे-

दिनभर में कितने कदम पैदल चले, यह भी जानें प्रतिदिन 30 मिनट पैदल चलने का अभ्यास करना चाहिए। प्रतिदिन प्रयास करे कि 10 हजार कदम जरूर चले ।

सोने के घंटे पता होने चाहिए। प्रयास करे कि प्रतिदिन 7-8 घंटे अच्छी नींद ले।

कमर का आकार कितना है, कही वह बढ़ तो नहीं रहा है। ध्यान रखे पुरुषों की 90 सेटीमीटर से कम और महिलाओं में 80 सेमी. से कम कमर होनी चाहिए।

ब्लडप्रेशर कभी जांचा ही नहीं है, परिवार में किसी को है या नहीं, यह तो पता होना ही चाहिए | रक्तचाप को 120-80 के बीच रखें।
खराब कोलेस्ट्रॉल एलडीएल का स्तर जरूर जाने। साथ ही एनबीएसी का स्तर क्या है, यह सब पता होना चाहिए।

ये नंबर आपको सेहतमंद और जागरूक रखने के लिए आवश्यक हैं।

धमनियों से शुरू होती है हार्ट की समस्या
जब ब्लडप्रेशर बढ़ने या तनाव की वजह से हृदय की धमनियों में जमा कोलेस्ट्रॉल में हल्का सा ब्रेक या कट लग जाए, तो शरीर को इंजरी महसूस होती है। चूंकि, धमनियां दो से तीन मिमी. बारीक होती है, ऐसे में अवरोध होना या रक्त का थक्का बनना रक्तसंचार में बाधक हो जाता है। जैसे हाथ में कट लगने के बाद कुछ देर में वहां पपड़ी बन जाती है और रक्तस्राव रुक जाता है, ठीक उसी तरह हार्ट के अंदर ब्लीडिंग रोकने के लिए प्लेटलेट्स इकट्ठा होते हैं और क्लाटिंग हो जाती है।

इससे हृदय की मांसपेशियों को रक्त नहीं पहुंच पाता। इससे सीने में दर्द शुरू हो जाता है और आगे चलकर यही हार्ट अटैक में बदल जाता है। जब 90 प्रतिशत से अधिक रुकावट हो, तो सोने में भारीपन, दर्द महसूस होता है और जब ब्लाकेज 100 प्रतिशत हो जाए तो हृदयाघात हो जाता है। चूंकि यह समस्या अचानक आती है, इसलिए तुरंत उपचार आवश्यक है। हार्टअटैक में 50 प्रतिशत लोगों की एक घंटे में ही मौत हो जाती है, वे अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं।

कोविड और खराब जीवनशैली ने बटाया जोखिम
खराब जीवनशैली के अलावा ड्रग्स का ओवरडोज, हार्मोनल थेरेपी जैसे कारण भी हृदय रोग के लिए जिम्मेदार हैं कोविड संक्रमण के बाद कम उम्र के लोगों में हार्टअटैक देखा जा रहा है। हालांकि, अनेक शोध में कोचिड वैक्सीन को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना गया है।

अनेक अध्ययन बताते हैं कि कोविड संक्रमण के दौरान अधिकांश मौतें फेफड़ों और हृदय में रक्त का थक्का बनने के कारण हुई थीं। यही कारण हैं कि संक्रमण होने पर दो से चार हफ्तों तक खून पतला करने वाली दवाएं दी जाती रहीं। उसके बाद सुधार तो हुआ, पर शिथिलता भरी जीवनशैली और खानपान की खराब आदत बनी रही, जो अब भारी पड़ रही है।

दो-तीन वर्षों से बचों बढ़ गया है हार्टअटैक
बीते दो-तीन वर्षों से हार्टअटैक बढ़ने का मुख्य कारण है कि हमारे देश में बीते 25-30 वर्षों में जंक फूड काफी लोकप्रिय हुआ है। जिन बच्चों ने उस दौर में जंक फूड खाना शुरू किया और शारीरिक रूप से निष्क्रिय होते गए, उन लोगों में यह परेशानी देखने में आ रही है। ऐसा नहीं है कि आज बर्गर खाया और हार्टअटैक आ गया। पहले यह बच्चों के मोटापे का कारण बना, फिर बीमारियों ने घेरा और फिर वही मौत का कारण बना।

मान लीजिए आज कोई 35-40 वर्ष का व्यक्ति बर्गर-पिज्जा खा रहा है और एक 5-6 साल का बच्चा भी वही खा रहा है तो दोनों का पाचन तंत्र बिल्कुल अलग-अलग होता है बच्चे का पाचन तंत्र विकास के चरण में होता है। मान लें बच्चे ने फ्रेंचाइ खाया और इससे उसके शरीर में गया ट्रांस फैट कम उम्र में ही धमनियों में जमना शुरू हो गया। 35 वर्ष के व्यक्ति का पाचन तंत्र विकसित होने के कारण नुकसान अपेक्षाकृत कम होगा। बच्चे को 5-6 वर्ष की उम्र में लगी जंक फूड की आदत उसे जवान होने पर बीमार ही बनाएगी, इसमें कोई शक नहीं है।

बच्चों की बदल गई दिनचर्या
बच्चे पहले पैदल या साइकिल से स्कूल जाया करते थे। स्कूलों में उनके लिए खेल का मैदान होता था । लेकिन, आज हम बच्चों को चाहकर भी पैदल स्कूल नहीं भेज सकते। स्कूलों में उनके खेलने के मैदान की व्यवस्था ही सत्म हो गई है। माता-पिता खुद भी व्यस्त जीवनशैली के अधीन हैं, वे बच्चों को बाहर ले नहीं जा सकते। ऐसे अनेक कारण हैं, जो नई पीढ़ी की सेहत को जोखिम में डाल रहे हैं।

जंक फूड पिछले 20-25 वर्षों से हमारे खानपान का हिस्सा बना हुआ है। चूंकि यह 25 साल पहले शुरू हुआ था, इसलिए 25-30 साल के लोगों में हार्टअटैक नजर आ रहा है। अगर यही आदत जारी रही तो आने वाले समय में 10 से 15 वर्ष के बच्चों में हार्ट अटैक की समस्या देखने को मिलेगी।

हार्ट की कराते रहें जांच कम रहेगा जोखिम

डा. विवेक कुमार (वाइस चेयरमैन कार्डियक राज मेक्स अस्पताल, नई दिल्ली) बताते हैं कि हृदय की सेहत जानने के लिए हमे दो-तीन बातो का ध्यान ‘रखना होगा। पहला, क्या पहले से कोई रिस्क फैक्टर है? जैसे परिवार में किसी को क्या हार्ट की बीमारी हो चुकी है ?

दूसरा, अगर ब्लडप्रेशर, डायबिटीज जैसी समस्या है, तो वह नियंत्रण में है या नहीं। हमें ध्यान रखना होगा कि जिनकी दिनचर्या ही हाई रिस्क पर है, उन्हें हार्ट की बीमारी होने की प्रबल आशंका रहती है। आमतौर पर 40 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों और 50 की उम्र के बाद ही महिलाओं में हार्ट की समस्या होने का जोखिम रहता है।

शुरुआती जांच बहुत महत्त्वपूर्ण
जिन लोगों में दो या इससे अधिक रिस्क फैक्टर होते हैं, जैसे डायबिटीज और बडप्रेशर के साथ- साथ धूम्रपान जैसी आदतें भी है, उन लोगों के हृदय की जांच बहुत आवश्यक है खासकर, लिपिड प्रोफाइल, इको और ईसीजी करके सही स्थिति का आकलन अवश्य करना चाहिए। आवश्यकता होने पर एजियोग्राफी या सीटी एजियोग्राफी की जा सकती है।

चूंकि, सबका सीटी करना संभव नहीं है तो शुरुआती जांच के बाद ही आगे की स्थिति जान सकते है। अगर माता-पिता दोनों को हार्ट की समस्या हो चुकी है तो बच्चे में भी आशंका रहती है। इसी तरह अनियंत्रित डायबिटीज, कोलेस्ट्राल, ब्लडप्रेशर हार्ट को जोखिम में डाल सकता है। आजकल भारतीयों में देखा गया है कि अगर लाइपोप्रोटीन बढ़ा हुआ है तो हार्ट से जुड़ी समस्या हो सकती है।

लक्षण दिखाने पर बरसें सतर्कता
अगर धमनियों में ब्लाकेज आती है तो पैदल चलने, व्यायाम करने पर सीने में दर्द, भारीपन और दोनों हाथों में दर्द बढ़ने जैसी समस्याएं | होती है और बैठने पर राहत मिल जाती है। इसका दूसरा लक्षण होता है पैदल चलने पर सांस फूलना डायबिटीज के मरीजों को सीने में दर्द नहीं होता, उन्हें सांस फूलने की समस्या हो सकती है। अगर नसों मे ब्लाकेज है या कोई कलाट फंस गया है, तो यह जानलेवा भी हो सकता है।

एक्यूट हार्ट अटैक में एक तिहाई लोग अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते। इसका विडो पीरियड एक से तीन घंटे का ही होता है। इससे अधिक होने पर हार्ट तेजी से डैमेज होता है और 24 घंटे के बाद काम करना बंद कर देता है। ऐसे में पंजियोप्लास्टी और बाइपास का भी लाभ नहीं मिलता।

इसलिए शुरुआती लक्षण पर गौर करना जरूरी है, जैसे कई लोगों में हाथों और पैरो मे दर्द या जलन की तरह महसूस होता है। कुछ लोगों को जबड़ों मे कुछ भारीपन लगता है। यह हेटिस्ट के पास चले जाते हैं, लेकिन ये हार्ट की समस्या के लक्षण होते हैं। हालांकि, ये लक्षण 10 प्रतिशत से कम लोगों में देखने में आता है।

सेहत को लेकर सावधानी
मान लीजिए कोई व्यक्ति पहले पांच कि.मी. आसानी से चलता था, लेकिन उसे सांस फूलने और कान होने लगे, तो यह खराब होती सेहत के संकेत हो सकते हैं। लोगो को लगता है कि उम्र बढ़ने से ऐसा हो रहा है। लेकिन, इसके पीछे हार्ट की समस्या भी हो सकती है। अगर शुरुआती जांच के बाद ही सही उपचार शुरू जाए, तो वह सामान्य व्यक्ति की तरह ही जीवन जी सकता है।

अगर हार्टअटैक के बाद हृदय कमजोर हो गया है, तो आगे चलकर परेशानी बढ़ सकती है। बचाव उपचार से बेहतर है, इसी फार्मूले को ध्यान में रखते हुए स्वस्थ जीवनशैली, सही और उपयुक्त आहार के नियम का पालन करना चाहिए।

प्रतिदिन 10-15 हजार कदम चलना, रनिंग, स्वीमिंग या साइकिलिंग कुछ भी कर सकते हैं। सफेद चीनी, आलू, चावल, बटर का नियंत्रित सेवन करना चाहिए। फाइबर युक्त आहार, सब्जियां जितना खाएंगे, हृदय की बीमारी होने की आशंका उतनी ही कम रहेगी।

क्या अलग होते हैं महिलाओं और पुरुषों में हार्टअटैक के लक्षण!
हार्टअटैक होने पर पुरुषों में सीने में दर्द, भारीपन जैसे लक्षण होते हैं। लेकिन, महिलाओं, बुजुर्गों और डायबिटीज वालों को जी मिचलाने, उल्टी महसूस होने, एसिडिटी, हार्टबर्न, उलझन बेचैनी जैसी समस्याएं हो सकती है। कई बार लगता है कि मिर्च-मसाला या गोलगप्पे खा लेने के कारण ऐसा होता है। दोनों के हृदयरोग और उपचार में भी बड़ा अंतर है।

महिलाएं 45 – 50 वर्ष की उम्र तक हार्मोनल बदलावों के कारण सुरक्षित रहती है। लेकिन, अब वह अंतर नही दिख रहा है। अब 25-30 वर्ष की महिलाओं में एजियोग्राफी में गंभीर बीमारियां दिख रही है। दूसरा, महिलाओं मे हार्टअटैक थोड़ा कम तो होता है, पर मौते अधिक होती हैं। इसका कारण है कि उन्हें सही समय पर उपचार नहीं मिल पाता।

पुरुष अक्सर आफिस या ऐसी जगहों पर होते हैं, जहा अस्पताल पहुंचाना आसान होता है। लेकिन, महिलाएं घरो मे या गांवों में होती हैं और पति के बाहर होने या किसी की सहायता नहीं मिल पाने के कारण उन्हें सही समय पर उपचार नहीं मिल पाता। कई बार वे खुद भी छिपा लेती हैं। थोड़ा राहत मिल जाने पर अस्पताल जाने से बचती हैं। इससे हार्ट की बीमारी गंभीर हो सकती है। जब भी लक्षण उभरे तो तुरंत इसकी जानकारी स्वजनों को देनी चाहिए। अब छोटे शहरों और कस्बों में भी सामान्य जांच और उपचार की व्यवस्था उपलब्ध है। केवल खून पतला करने की दवाई देने से भी जान बच सकती है।

किस तरह की जांच जरूरी
स्ट्रेस, इको, ईसीजी, ट्रेडमिल टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, लिपोप्रोटीनए पंजियोग्राफी, सीटी कैल्शियम स्कोरिंग की जाती है। इससे पता चलता है कि हार्ट की नसों में ब्लाकेज होने की आशंका है या नहीं।

जीवनशैली का तय हो नियम
जंक फूड नहीं खाना है।

धूम्रपान, तंबाकू से दूर रहना है।

स्वजन और मित्रों के साथ समय बिताएं।

आरामतलब होने से बचना है।

प्रतिदिन 30 मिनट व्यायाम जरूर करना है। बस इतना ही करें। दिल की सेहत के लिए इतना ही पर्याप्त है।

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