ठेकेदारों के भरोसे का खाना-पानी भले ही गुणवत्ता पूर्ण न हो लेकिन सेना और अर्ध सैनिक बलों का जवान हार नहीं मानता। सेना हो या अर्ध सैनिक बल, जवान को सबसे ज्यादा अफसरों की अफसरी तोड़ती है। सेना मुख्यालय से लेकर सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात जवान मुंह नहीं खोलना चाहते, लेकिन जैसे ही अफसरों की अफसरी पर तंज और आपूर्तिकर्ता ठेकेदारों की रईसी सुनते हैं, मुस्कराना नहीं भूलते। इसी रूप में बृहस्पतिवार को भी उनकी प्रतिक्रिया मिली। यहां तक कि शास्त्री भवन में सुरक्षा के तैनात सीआईएसएफ के जवानों का कहना है कि वह सुरक्षा के मानक के हिसाब से केवल आदेश का पालन करते हैं, मुंह नहीं खोलते।
सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात अर्ध सैनिक बल के एक जवान ने माना कि दिल्ली में तो मेस का खाना मिल जाता है। क्वालिटी घटिया-बढ़िया होती रहती है, लेकिन सीमा पर दूर-दराज के इलाके में यह शिकायत है। सेना और सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने भी इस कमी को स्वीकार किया और माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान में लेने के बाद जल्द ही खाने की गुणवत्ता ठीक करने संबंधी दिशा-निर्देशों को अमल में लाया जाएगा।जवान नहीं करते परवाह
सियाचिन, बेस कैंप (थ्वॉयस) का तापमान जानकर ही शरीर में रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात साल पहले जाना हुआ था और सुबह उठने पर देखा कि बैस कैंप के पास ठहराए गए कमरे के बाथरूम का पानी टोटी से टपक नहीं रहा है। टोटी छूने पर बर्फ छूने सा एहसास हो रहा है और पानी जम गया है। पता चला कि यह यहां के लिए आम है और इस हालात में जवान सीना ताने खड़े रहते हैं। बैस कैंप से ऊपर की हालत तो और कठिन हैं। सबसे ऊंचे दुनिया के युद्धस्थल पर जवान टोलियां बनाकर एक दूसरे को रस्सी से पकड़े साथ चलते हैं। पता नहीं कहां पैर पड़े, बर्फ में धंस जाएं। इतना ही नहीं दूर-दूर तक परिंदा नहीं दिखता, लेकिन सेना का जवान हार नहीं मानता।
सियाचिन, बेस कैंप (थ्वॉयस) का तापमान जानकर ही शरीर में रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात साल पहले जाना हुआ था और सुबह उठने पर देखा कि बैस कैंप के पास ठहराए गए कमरे के बाथरूम का पानी टोटी से टपक नहीं रहा है। टोटी छूने पर बर्फ छूने सा एहसास हो रहा है और पानी जम गया है। पता चला कि यह यहां के लिए आम है और इस हालात में जवान सीना ताने खड़े रहते हैं। बैस कैंप से ऊपर की हालत तो और कठिन हैं। सबसे ऊंचे दुनिया के युद्धस्थल पर जवान टोलियां बनाकर एक दूसरे को रस्सी से पकड़े साथ चलते हैं। पता नहीं कहां पैर पड़े, बर्फ में धंस जाएं। इतना ही नहीं दूर-दूर तक परिंदा नहीं दिखता, लेकिन सेना का जवान हार नहीं मानता।
जोशीमठ के आगे आईटीबीपी का जवान मिलता है। लेह-लद्दाख में चीन की सीमा के निकट आईटीबीपी मिलती है। जम्मू-कश्मीर की अंतरराष्ट्रीय सीमा बीएसएफ के हवाले हैं। असम राइफल चुनौती पूर्ण भूमिका निभा रही है। सिक्किम के पास सीमा पर (नाथुला पास) जाना हुआ, चीरती बर्फीली हवा जान निकाल रही थी लेकिन सीमा के प्रहरी सजग थे। ये जवान हैं जो दुश्मन के सामने खड़े रहते हैं। हार नहीं मानते।
55-60 डिग्री का तापमान
पारे के 40 डिग्री को छूते ही दिल्ली की रायसीना पहाड़ी लाल हो जाती है। गर्मी के मारे बुरा हाल, लेकिन जरा फर्ज कीजिए कि एक टैंक के भीतर पोखरण में कितना तापमान होता है। वह भी तब लाइव फायरिंग हो। लाठी-महाजन रेंज का रेगिस्तान आसानी से पारे 55-60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा देता है। लेकिन जवान चाहे सेना के हो या अर्धसैनिक बल के गश्त नियम के हिसाब से करते हैं।
पारे के 40 डिग्री को छूते ही दिल्ली की रायसीना पहाड़ी लाल हो जाती है। गर्मी के मारे बुरा हाल, लेकिन जरा फर्ज कीजिए कि एक टैंक के भीतर पोखरण में कितना तापमान होता है। वह भी तब लाइव फायरिंग हो। लाठी-महाजन रेंज का रेगिस्तान आसानी से पारे 55-60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा देता है। लेकिन जवान चाहे सेना के हो या अर्धसैनिक बल के गश्त नियम के हिसाब से करते हैं।