
सरकार का मानना है कि असंगठित सेक्टर में काम कर रहे देश भर के 95 फीसदी से ज्यादा ज्वैलर्स फिलहाल पुरानी ज्वैलरी खरीदने का किसी तरह का कोई हिसाब-किताब नहीं रखते हैं और ना ही इसके बारे में किसी तरह की जानकारी देते नहीं है। अब जीएसटी लागू होने के बाद यह सारा सिस्टम खत्म हो जाएगा। 1 जुलाई से प्रत्येक ज्वैलर्स को इसके बारे में
अभी असंगठित ज्वैलर पुरानी ज्वैलरी की खरीद को अपने इन्वॉइस में नहीं दिखाते। नए सिस्टम में अब ये भी ऑन-रिकॉर्ड होगा। मौजूदा सिस्टम में ज्यादातर कारोबारी पुरानी ज्वैलरी को खरीद कर और उसमें वैल्यू एडिशन कर बेचते हैं। ऐसे में उन्हें केवल डिफरेंस प्राइस पर ही टैक्स देना होता है। सरकार ज्वैलरी खरीदने और बेचने वाले का रिकॉर्ड रखना चाहती है, इसलिए सरकार ने जीएसटी में यह नियम बनाए हैं।  
पुरानी ज्वैलरी को नया करके बेचने पर भी देना होगा टैक्स
अगर कोई ज्वैलर पुरानी ज्वैलरी को खरीदकर के उसमें किसी प्रकार का कोई वैल्यू एडीशन करता है या फिर गला कर के नया स्वरुप देता है तो भी उसके बारे में डिटेल सरकार को देनी होगी। 
 
ज्वैलर को देना होगा दो बार टैक्स
उदाहरण के तौर पर अगर कस्टमर 50 हजार रुपये की पुरानी ज्वैलरी बेचकर 1 लाख रुपये की ज्वैलरी खरीदता है तो दोनों लोगों को टैक्स देना होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब ज्वैलर को 50 हजार रुपये पर रिवर्स चार्ज सरकार को देना होगा। 1 लाख रुपये की ज्वैलरी पर जीएसटी कस्टमर से लेगा। यानी, ज्वैलर को सरकार को दो बार टैक्स जमा कराना होगा।
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