हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चीन के साए से बाहर निकालने की वकालत करते हुए कहा था कि चीन से सस्ते आयात से देश में उत्पादित की जा रही वस्तुओं का बाजार खराब हो रहा है. लिहाजा संघ ने केंद्र सरकार को चीन से दूरी बनाने के साथ-साथ अपने निजी क्षेत्र को भी चीन की कंपनियों से दूर रहने की सलाह दी थी. अब आरएसएस केंद्र की एनडीए सरकार को सुझाव दे रहा है कि वह चीन की कारोबारी कुरीतियों का जवाब देने के साथ-साथ कैलाश, हिमालय और तिब्बत को चीन के चंगुल से छुड़ाने की कवायद और तेज करे.कांग्रेस को लगा बड़ा झटका, हार्दिक के बाद अब जिग्नेश मेवाणी दे दिया धोखा…
चीनी उत्पादों का बहिष्कार पहला कदम
देश में बिक रहे चीन के सस्ते उत्पादों के विरोध में इस हफ्ते स्वदेशी जागरण मंच ने दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ी रैली का आयोजन किया था. इस रैली में आरएसएस से जुड़े कई अन्य संगठनों ने भी हिस्सा लिया. रैली के दौरान कहा गया कि डोकलाम में चीन की काली करतूत को देखने के बाद भारत सरकार को न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था से चीन के प्रकोप को कम करने की जरूरत है, बल्कि उसे समूचे कैलाश, हिमालय और तिब्बत को चीन के चंगुल से बाहर निकालने की कवायद को तेज कर देना चाहिए.
चीन की असुरी शक्तियां
गौरतलब है कि इससे पहले भी इंडिया टुडे समूह को आरएसएस प्रचारक ने बयान दिया था कि चीन की असुरी शक्तियां भारत समेत पूरे एशिया प्रांत पर हावी हैं. आरएसएस ने देश के सभी नागरिकों से अपील भी की थी कि वह दिन में पांच बार समूचे एशिया प्रांत को चीन की असुरी शक्तियों से मुक्त कराने के लिए मंत्रों का पाठ कराने का संकल्प लें. जिसमें चीन में उत्पादित वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करना और चीन के चंगुल से भारत के इलाकों को खाली कराना भी शामिल था.
ये है आरएसएस की तिब्बत पॉलिसी
रामलीला मैदान में हुई रैली के बाद स्वदेशी जागरण मंच ने केन्द्र सरकार को ज्ञापन देते हुए कहा है कि डोकलाम जैसी स्थिति से बचने के लिए उसे तिब्बत को उसकी संप्रभुता दिलाने की कवायद को तेज करना चाहिए. स्वदेशी जागरण मंच के ज्ञापन के मुताबिक भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिब्बत की आजादी के लिए अपनी कोशिशों को तेज करना चाहिए. तिब्बत को चीन के चंगुल से निकालने के लिए भारत को दुनियाभर में नया गठबंधन बनाने के साथ-साथ जागरूकता अभियान तेज करने की जरूरत है. लिहाजा, आरएसएस का मानना है कि तिब्बत की आजादी को वैश्विक मुद्दा बनाकर भारत सरकार चीन द्वारा तिब्बत में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन को खत्म कराने की कोशिश करे. भारत के इस कदम से उसे समूचे कैलाश और हिमालय समेत तिब्बत को चीन की असुरी शक्तियों से मुक्त किया जा सकता है.
स्वदेशी जागरण मंच की दलील है कि जहां एक तरफ भारत का अपने ज्यादातर पड़ोसी मुल्कों के साथ शांति और साझा विकास का रिश्ता मजबूत हो रहा है वहीं चीन ने भारत समेत भूटान और नेपाल के इलाकों में अपनी विस्तार की नीति को थोपा है. इसी नीति के चलते हाल ही में चीन ने सिक्किम से सटे भूटान के इलाके डोकलाम में अपनी असुरी ताकतों का इस्तेमाल करने की कोशिश की थी. हालांकि उसकी यह चाल भूटान और भारत के साझा प्रयासों के चलते सफल नहीं हो सकी. इससे सबक लेते हुए अब भारत को तिब्बत समेत उन सभी क्षेत्रों को चीन के चंगुल से निकालने की कवायद तेज कर देनी चाहिए जिससे चीन को डोकलाम जैसी स्थिति पैदा करने का मौका न मिले.
फ्री तिब्बत से भारत को मिलेगा भूटान जैसा दोस्त
भूटान के राजा नई दिल्ली की यात्रा पर हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते का दूसरा उदाहरण पूरी दुनिया में नहीं मिलता. दोनों देश आपसी सुरक्षा के साथ-साथ अपनी आर्थिक नीतियों के निर्धारण के लिए अटूट रिश्ते में विश्वास रखते हैं. इसी के चलते डोकलाम पर चीन के कब्जे की कोशिश को विफल करने के लिए दोनों देशों ने आपसी सहयोग से काम किया. गौरतलब है कि तिब्बत में बीते सात दशकों से चीन की विस्तार वादी नीतियां जारी हैं. उसकी इसी नीति के चलते तिब्बत की सरकार और तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा तिब्बत से निर्वासित कर दिए गए हैं. चीन के इस मानवाधिकार उल्लंघन के बाद से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत से चल रही है और लगातार कोशिश कर रही है कि वह तिब्बत को चीन के चंगुल से बाहर निकाल ले. ऐसे में यदि भारत संघ द्वारा प्रस्तावित इस कवायद पर जोर देता है तो जाहिर है दोनों देशों के बीच वही रिश्ता कायम होगा जो भारत और भूटान के बीच मौजूद है.