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रिहाई मंच की ओर से आयोजित सेमिनार में प्रशांत भूषण ने कहा कि संविधान के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ दो पक्षों के बीच विवाद निपटाने की संस्था नहीं है। उस पर मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का भी दायित्व है।
अगर सरकार अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाती है तो न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह सरकार को उसके कर्तव्यों का बोध कराए और उसे आगाह करे। आज कुछ न्यायाधीश ऐसी धारणा रखने लगे हैं कि वे कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं।
स्वतंत्रता का मतलब है सरकार से स्वतंत्रता ताकि आप उस पर निगरानी रख सकें। अगर वक्त रहते न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को नहीं रोका गया तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी खत्म हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि आंदोलन के माध्यम से ही देश में न्यायिक सुधार लाया जा सकता है। कार्यक्रम में पूर्व लोकायुक्त एससी वर्मा, संदीप पांडे, एडवोकेट मोहम्मद शुएब, रफत फातिमा, एमके शेरवानी भी मौजूद रहे।
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