पाकिस्तान को अमेरिका से एक और बड़ा झटका लगा है। अमेरिका ने पाकिस्तान के सबसे बड़े ‘हबीब बैंक’ (HBL) की न्यूयॉर्क स्थित शाखा को बंद कर दिया है। इसके अलावा उस पर करीब 225 मिलियन डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया है, जिसका भुगतान 14 दिनों में किया जाना है। हबीब बैंक यह जुर्माना चुकाने के लिए तैयार भी हो गया है। यह फैसला इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि एचबीएल पाकिस्तान में प्राइवेट सेक्टर का सबसे बड़ा बैंक है।अभी-अभी: नवाज शरीफ पर दर्ज हुए भ्रष्टाचार के 4 मामले, बढ़ी परिजन की परेशानी
बैंक के इतिहास पर नजर डालेंगे तो इसकी जड़ें भारत से जुड़ी रही हैं। लेकिन आजादी के बाद यह बैंक पाकिस्तान चला गया और वहां एक नई शुरुआत हुई। अमेरिका ने बैंक के खिलाफ जो कार्रवाई की है, उसके पीछे वजहों में आतंकियों के वित्त पोषण, मनी लांड्रिंग और अन्य अवैध वित्तीय लेन-देन रोकने के लिए बने कानून का उल्लंघन करना शामिल है। अमेरिका का यह भी कहना है कि एचबीएल ने करोड़ों डॉलर की राशि सऊदी अरब के बैंक अल राझी बैंक को ट्रांसफर की है। आरोप है कि इस बैंक का आतंकी संगठन अलकायदा से संबंध है। इसके अलावा एचबीएल इस बाबत अमेरिका को संतुष्ट करने में नाकाम रहा है।
ब्रिक्स सम्मेलन के बाद हुई कार्रवाई
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अमेरिका की तरफ से यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब कुछ दिन पहले चीन के शियामिन शहर में ब्रिक्स का सम्मेलन हुआ था। यहां पर चीन ने पहली बार पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का जिक्र किया था। इसके अलावा इस दौरान जारी घोषणापत्र में भी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का नाम लिया गया था। इन सभी के बीच यह सवाल जेहन में आना बेहद लाजमी है कि अमेरिका की इस कार्रवाई के पीछे क्या ‘ब्रिक्स’ है या कुछ और। इस बाबत विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने jagran.com से खास बातचीत के दौरान कहा कि दरअसल हाल के कुछ महीनों में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्तों में काफी खटास आ गई है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी रखा तो उसका प्रमुख अमेरिकी सहयोगी का दर्जा छिन सकता है और सैन्य मदद निलंबित हो सकती है। उनके मुताबिक पाकिस्तान ने आजादी के बाद से पश्चिमी देशों के हितों को ध्यान में रखकर जो नीतियां बनाई थीं, उसमें वर्ष 2006 के बाद बदलाव आया है। इसके बाद पाकिस्तान और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ीं और इसका नतीजा आज सभी के सामने है। इसकी वजह वह दुनिया में इस दौरान आई मंदी को भी मानते हैं, जिसके बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई। हालांकि वह यह भी मानते हैं कि आज अमेरिका उस गिरावट से काफी कुछ उबर गया है।
भारत अमेरिकी संबंधों में आई गरमाहट
आगा ने इस दौरान यह भी बताया कि इस दौर में भारत और अमेरिका के संबंधों में सुधार आया। वहीं पाकिस्तान पहले यह मानता था कि कश्मीर को लेकर उसकी पॉलिसी को अमेरिका का समर्थन मिलता रहेगा, लेकिन अमेरिका अपने हितों की अनदेखी नहीं कर सकता है। यही वजह है कि दोनों के हितों के टकराव की बदौलत ही अब इन दोनों देशों के रिश्तों में खटास सामने आ रही है। अफगानिस्तान में भी दोनों के हितों में टकराव साफतौर पर दिखाई दे रहा है। वहां पर अमेरिका, भारत का सहयोग चाहता है वहीं पाकिस्तान इसके सख्त खिलाफ है। मौजूदा दौर में जिस तरह से पाकिस्तान और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं, उसकी वजह यह भी है कि इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हुई है। चीन और पाकिस्तान दोनों को ही अपने रिश्तों में फायदा नजर आने लगा है। उन्होंने यह भी माना कि भविष्य में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्तोंं में तनाव और बढ़ेगा। हालांकि अमेरिका पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से नहीं छोड़ेगा।
ट्रंप के बयान के बाद की गई कार्रवाई
यहां पर यह भी ध्यान रखना होगा कि कराची स्थित मुख्यालय वाले हबीब बैंक के खिलाफ कार्रवाई अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान के बाद की गई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिकी और अफगानी सैनिकों पर हमले करने वाले आतंकियों को पाकिस्तान सुरक्षित पनाहगाह मुहैया करा रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि अगर उसने आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी रखा तो उसका प्रमुख अमेरिकी सहयोगी का दर्जा छिन सकता है और सैन्य मदद निलंबित हो सकती है।
बैंक में बरती गई अनियमितता
अमेरिका में विदेशी बैंकों के नियामक वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) का कहना है कि यह फैसला 2016 में की गई जांच के बाद लिया गया है। इसमें बैंक के जोखिम प्रबंधन और अनुपालन में कई खामियां पाई गई थीं। 2015 के सहमति आदेश के अनुरूप बैंक व्यापक सुधारात्मक कार्रवाई करने में भी असफल रहा। वित्तीय सेवाओं की सुपरिटेंडेंट मारिया टी वुलो ने कहा, ‘डीएफएस ऐसे अपर्याप्त जोखिमों एवं अनुपालन कार्यों को सहन नहीं करेगा जो आतंकियों को धन मुहैया कराने के दरवाजे खोलते हों। जो इस देश के लोगों व वित्तीय प्रणाली के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करते हों।’
बैंक को सुधार के दिए गए कई मौके
उन्होंने कहा, ‘बैंक को अपनी इन खामियों में सुधार के लिए बार-बार पर्याप्त से भी ज्यादा मौके दिए गए, लेकिन फिर भी वह ऐसा करने में असफल रहा।’ उन्होंने कहा कि हबीब बैंक को देश की वित्तीय सेवाओं और सुरक्षा को खतरे में डालने की जिम्मेदारी से बचकर नहीं जाने दिया जाएगा। इस बीच हबीब बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इस सहमति आदेश के बाद सभी आरोपों को हटा लिया गया है। उन्होंने कहा कि हमारी पूंजी पर्याप्त है। हबीब बैंक इस समझौते के लिए इसलिए तैयार हुआ, क्योंकि लंबी कानूनी लड़ाई बैंक या देश के हित में नहीं है। आरोप साबित नहीं हुए हैं।’ बैंक पर जुर्माने का आकलन करीब चार हजार करोड़ रुपये किया गया था, लेकिन एक समझौते के तहत यह रकम 1,400 करोड़ रुपये कर दी गई।