मुसलमानों के दो मुख्य त्यौहार ईद-उल-अजहा और ईद-उल फितर है। जहां ईद-उल-अजहा बकरीद को कहा जाता है। वहीं, ईद-उल फितर मीठी ईद को कहा जाता है। ईद-उल फितर के करीब 70 दिन बाद बकरीद को मनाया जाता है। मुसलमान यह त्यौहार कुर्बानी के पर्व के तौर पर मनाते हैं। इस्लाम में इस पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन लोग नमाज अदा करने के बाद बकरे की कुर्बानी देते हैं। यह त्यौहार लोगों को सच्चाई की राह पर सबकुछ कुर्बान करने का संदेश देता है। तो चलिए जानते हैं कि ईद-उल-अजहा यानी बकरीद कब है।
इस दिन मनाई जाएगी बकरीद:
इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के मुताबिक, बारहवें महीने जु-अल-हज्जा की पहली तारीख को चांद दिखाई देता है। ऐसे में इस महीने के दसवें दिन ईद-उल-अजहा (बड़ी ईद) मनाई जाएगी। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष तारीख में बदलाव होता है। पिछली तारीख से इस बार 11 दिन पहले यह पर्व मनाया जाएगा। बता दें कि उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, इस साल बकरीद का त्योहार 31 जुलाई से शुरु होकर 1 अगस्त की शाम को चलेगी।
बकरीद का महत्व
इस्लाम धर्म में पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की परंपरा की शुरु की गई थी। माना जाता है कि इब्राहिम अलैय सलाम की कोई औलाद नहीं थी। कई मिन्नतों बाद उन्हें एक औलाद हुई जिसका नाम इस्माइल रखा। इब्राहिम, इस्माइल से बेहद प्यार करता था। लेकिन एक रात अल्लाह ने इब्राहिम से उसकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांग ली। इब्राहिम ने अपने प्यारे जानवरों की कुर्बानी एक-एक कर दे दी। इसके बाद भी अल्लाह एक बार फिर उसके सपने में आए और फिर से सबसे प्यारी चीज की कुर्बान करने का आदेश दिया।
मान्यता है कि इब्राहिम को इस्माइल यानी अपने बेटे से बेहद प्यार था। अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वो अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गया। इस दौरान इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। अपने बेटे की कुर्बानी देने के बाद जब इब्राहिम ने अपने आंखों से पट्टी खोली तो उन्होंने देखा कि उनका बेटा जीवित है। यह देखकर वो बहुत खुश हुआ। अल्लाह ने उसकी निष्ठा देख उसके बेटे की जगह बकरा रख दिया। तब से ही यह परंपरा चली आ रही है कि बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाए। लोग इब्राहिम द्वारा दी गई कुर्बानी को याद करते हुए बकरों की कुर्बानी देते हैं।