पिछले साल तक घाटे में रही देश की जानीमानी बिस्किट कंपनी पारले-जी इन दिनों सुर्खियों में है. दरअसल, लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में पारले-जी बिस्किट की रिकॉर्ड बिक्री हुई है. बताया जा रहा है कि करीब 82 साल के इतिहास में पारले-जी बिस्किट की इतनी जबरदस्त बिक्री नहीं देखी गई थी. आज हम आपको इस रिपोर्ट में पारले के बिस्किट और बिस्किट के ब्रांड बनने की पूरी कहानी बताएंगे….
1928 से शुरू हुआ सफर
पारले के सफर की शुरुआत साल 1929 से हुई थी. ये वो वक्त था, जब ब्रिटिश शासन के खिलाफ देश में स्वदेशी आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली थी. आपको यहां बता दें कि स्वदेशी आंदोलन, महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र बिन्दु था. उन्होंने इसे स्वराज की आत्मा भी कहा था. इसके जरिए ब्रिटिश हुकूमत के माल का बहिष्कार किया जाता था और खुद की चीजों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा था. इसी सोच के साथ 1929 में मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पार्ले में 12 लोगों के साथ मिलकर पहली फैक्ट्री लगाई थी. कहते हैं कि इस कस्बे के नाम से ही कंपनी को ”पारले” नाम दिया गया.
पारले जी तक का सफर..
पारले ने पहली बार 1938 में पारले-ग्लूको (पारले ग्लूकोज) नाम से बिस्किट का उत्पादन शुरू किया था. 1940- 50 के दशक में कंपनी ने भारत के पहले नमकीन बिस्किट ”मोनाको” को पेश किया. पारले ने 1956 में एक खास स्नैक्स बनाया, जो पनीर कट की तरह होता है. अब बारी टॉफी की थी तो, पारले ने साल 1963 में किस्मी (Kismi)और 1966 में पॉपींस का निर्माण शुरू किया. इस दौरान कंपनी ने नमकीन स्नैक्स के तौर पर पारले जेफ को लॉन्च किया.
1974 में, पारले ने स्वीट-नमकीन का क्रैकजैक बिस्किट पेश किया. 1980 के बाद पारले ग्लूको बिस्किट के नाम को शॉर्ट कर पारले-जी बना दिया गया, जहां जी का मतलब ग्लूकोज से था. साल 1983 में चॉकलेट मेलोडी और 1986 में भारत का पहला मैंगो कैंडी मैंगो बाइट लॉन्च किया.
साल 1996 में Hide & Seek बिस्किट को लॉन्च किया गया. आज ये सबसे अधिक चॉकलेट चिप बिस्किट के तौर पर चर्चित है. आज पारले दुनियाभर में फैल चुका है. पारले की अब भारत के बाहर 7 देशों में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं. ये 7 देश- कैमरून, नाइजीरिया, घाना, इथियोपिया, केन्या, आइवरी कोस्ट, नेपाल हैं. साल 2018 में कंपनी ने मेक्सिको में एक नया प्लांट बनाया. साल 2011 में पारले-जी दुनिया का सबसे अधिक बिकने वाला बिस्किट बना था.
ब्रांड बनने की कहानी
पारले को पहचान कई अलग-अलग विज्ञापनों या प्रचार के जरिए भी मिला. 90 के दशक में बच्चों के फेवरेट शो शक्तिमान की बात हो या फिर छोटी बच्ची का कवर हो, हर तरीके के प्रचार में पारले के बिस्किट को लोगों ने पसंद किया. आज पारले के अलग- अलग कैटेगरी में बिस्किट की कीमत 2 रुपये से लेकर 50 रुपये तक है. इसे ग्रामीण इलाकों का बिस्किट माना जाता है. यही वजह है कि लॉकडाउन में पारले की बिक्री बढ़ी है. दरअसल, इस दौरान पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों के लिए ये बिस्किट वरदान साबित हुआ है.