भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने जागेश्वर और आसपास के मंदिर समूहों में धार्मिक अनुष्ठानों में पंडाल लगाने पर पूरी तरह रोक लगा दी है। एएसआइ का कहना है कि जागेश्वर धाम और आसपास के मंदिर समूह संरक्षित स्मारकों में शुमार है। इसलिए श्रद्धालु यहां पंडाल लगाकर ध्वनि प्रदूषण नहीं फैला सकते।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सूची में जागेश्वर धाम, कुबेर मंदिर समेत आसपास के मंदिर समूह संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में शामिल रहे हैं। इसके बाद भी दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर के अंदर भागवत, रामचरित मानस, देवी जागरण और विवाह कार्यक्रमों का पंडाल लगाकर आयोजन करते थे।
अब एएसआइ ने मंदिर समूह में इस तरह के आयोजनों पर पूरी तरह रोक लगा दी है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सावन के मेले के दौरान श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर में धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी गई है। लेकिन, अन्य समय धार्मिक आयोजन मंदिर परिसर से बाहर की सम्पन्न कराने होंगे। इधर एएसआइ के इस फरमान से भक्तों में आक्रोश भी व्याप्त है।
विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में पूर्व में एएसआई ने यहां डेड मोन्यूमेंट (मृत स्मारक) का बोर्ड भी लगाया था। अफसरों ने बाद में इस बोर्ड को वहां से हटा दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक ओर एएसआई अपनी प्रचार सामग्री में जागेश्वर धाम को आस्था का केंद्र बता रहा है। वहीं दूसरी ओर धार्मिक अनुष्ठानों पर रोक लगाकर श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है।
बदल गया पूजन का स्वरूप
जागेश्वर धाम मंदिर में पूर्व में शिव का रूद्राभिषेक मंदिर के गर्भगृह में हुआ करता था। लेकिन एएसआई और मंदिर समिति द्वारा पूजा अर्चना में किए जा रहे बदलाव के कारण अब श्रद्धालुओं को कृत्रिम शिवलिंग पर मंदिर के बाहर रूद्राभिषेक करना पड़ रहा है। श्रद्धालुओं का कहना है कि वह बड़ी आस्था के साथ पूजा अर्चना के लिए जागेश्वर धाम आते हैं। लेकिन पूजा के तरीकों में बदलाव के कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है।
संरक्षित स्मारकों में शामिल
देहरादून मंडल के पुरातत्वविद अधीक्षण लिली धस्माना के मुताबिक जागेश्वर धाम और उसके आसपास के मंदिर समूहों को संरक्षित स्मारकों की सूची में रखा गया है। इसलिए वहां पंडाल लगना और ध्वनि प्रदूषण प्रतिबंधित है। इस कारण ही मंदिर में धार्मिक आयोजनों के दौरान पंडाल लगाने और ध्वनि प्रदूषण फैलाने की मनाही की गई है।