ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों के बाद परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर फ्रांस की चिंता बढ़ गई है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का कहना है कि अमेरिकी हमलों से ईरान को नुकसान हुआ है। अब साफ है कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) से खुद को बाहर कर लेगा। मैक्रों का कहना है कि यह स्थिति सबसे खराब होगी। इस मामले को लेकर मैक्रों ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से बात भी की है।
मैक्रों ने कहा कि अमेरिकी हमलों का नतीजा यह होगा कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि से बाहर निकल जाएगा। इसलिए यह एक भटकाव और सामूहिक रूप से कमजोर हो जाएगा। हमारी कोशिश है कि हम संधि को कायम रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों सदस्य से बात करेंगे। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप से बात की और कहा कि हमले के बाद हमने तेहरान से संपर्क किए हैं। हमें उम्मीद है कि हमारे विचार समान होंगे। हमारा उद्देश्य यह है कि ईरान द्वारा परमाणु निर्माण कार्य पुनः शुरू न किया जाए।
1970 में ईरान ने किए थे एनपीटी पर हस्ताक्षर
ईरान ने 1950 के दशक के अंत में अमेरिका की तकनीकी सहायता से अपने परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी। उस समय शाह मोहम्मद रजा पहलवी ईरान के शासक थे। उन्होंने अमेरिका के साथ एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 1970 में ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किया। उसने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को अपनी परमाणु सामग्री घोषित करने की प्रतिबद्धता जताई।
हालांकि, 2000 के दशक की शुरुआत में ईरान के अघोषित परमाणु स्थलों के बारे में जो जानकारी सामने आई उसने विश्व समुदाय की चिंताएं बढ़ा दी। आईएईए की 2011 की रिपोर्ट में बताया गया कि 2003 तक ही ईरान परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कई गतिविधियों के करीब पहुंच गया था। यह जानकारी सामने आने के बाद ईरान की यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया।
ईरान जता चुका आपत्ति
अमेरिकी हमलों के बाद ईरान ने कहा था कि उसके परमाणु स्थलों पर हमले अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हैं। यह कार्रवाई दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की उदासीनता और मिलीभगत के तहत हुई। अमेरिकी दुश्मन ने हमलों की जिम्मेदारी ली है, जो सुरक्षा समझौते और एनपीटी के अनुसार निरंतर आईएईए निगरानी के अधीन हैं। यह उम्मीद की जाती है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय जंगलराज जैसी इस अराजकता की निंदा करेगा और ईरान को उसके वैध अधिकारों का दावा करने में समर्थन देगा। इसके बाद माना जा रहा है कि ईरान एनपीटी से खुद को अलग कर लेगा।