केंद्र सरकार ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसले में श्रम कानून में बड़े बदलाव और सुधार की घोषणा कर दी। इस प्रमुख सुधार के जरिए 29 मौजूदा श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनाया गया है। 29 श्रम कानूनों को महज 4 कोड तक सीमित किया है। श्रम मंत्रालय के मुताबिक, इन नए कोड से देश के सभी श्रमिकों जैसे- अनौपचारिक सेक्टर, गिग वर्कर्स, प्रवासी मजदूरों और महिलाओं समेत बेहतर वेतन, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य-सुरक्षा की गारंटी मिलेगी।
कंपनियों अपने हिसाब से कर सकेंगी छंटनी
इसमें गिग यानी वर्कर्स के तौर पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए यूनिवर्सल सामाजिक सुरक्षा कवरेज, सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य नियुक्ति पत्र और सभी क्षेत्रों में वैधानिक न्यूनतम मजदूरी और समय पर पैसे का भुगतान जैसे प्रावधान शामिल हैं।इसके साथ ही लंबे काम के घंटे, एक निश्चित समय के रोजगार और कंपनियों के अनुकूल छंटनी नियमों की अनुमति भी शामिल है। हालांकि, कंपनी द्वारा अपने हिसाब से कर्मचारियों की छटनी के नियम की श्रमिक संगठनों ने आलोचना की है।
दरअसल, ये चार श्रम संहिताएं- वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता 2020 हैं। इन्हें पांच साल पहले संसद ने पास किया था। चार संहिताओं में 29 श्रम कानून शामिल किए गए हैं। वेतन संहिता में चार, सामाजिक सुरक्षा संहिता में नौ, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता में 13 और औद्योगिक संबंध संहिता में तीन कानूनों को मिलाया गया है।
हालांकि, मजदूर संगठनों ने पूर्व में छंटनी संबंधी अस्पष्ट प्रावधानों और केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वयन के दौरान संभावित मनमाने व्यवहार को लेकर इन संहिताओं की आलोचना की थी। इनमें बंदी, छंटनी या लागत कटौती के लिए अनिवार्य सरकारी अनुमति की सीमा बढ़ा दी गई है। मौजूदा प्रावधान में 100 या अधिक श्रमिकों वाली कंपनियों को सरकारी अनुमति की जरूरत थी। अब नई संहिता में यह सीमा 300 श्रमिकों तक बढ़ा दी गई है।
काम के घंटे 9 से बढ़ाकर 12 घंटे
इसके अलावा, फैक्टरियों में काम के घंटे नौ से बढ़ाकर 12 घंटे और दुकानों तथा प्रतिष्ठानों में नौ घंटे से बढ़ाकर 10 घंटे कर दिए गए हैं। अब इन संहिताओं के आधार पर नियम बनाने होंगे। चूंकि श्रम समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए केंद्र और राज्य दोनों को कानून एवं नियम बनाने होंगे। पश्चिम बंगाल को छोड़कर ज्यादातर राज्यों ने पिछले कुछ सालों में श्रम कानूनों से संबंधित बदलाव कर लिए हैं।
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