मध्य हिमालयी क्षेत्र भूस्खलन के मामले में और संवेदनशील हो गया है। इस बार बारिश में भूस्खलन की घटनाएं और बढ़ेंगी। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बराबर लग रहे भूकंप के झटकों की वजह से मिटटी की पकड़ और ढीली हो रही है।मोसुल को मिली ISIS से मुक्ति, कब आज़ाद होंगे 39 भारतीय?
जैसे ही इस पर बारिश से दबाव बढ़ेगा, यह और धसक जाएगी। इसके अलावा पश्चिमी विक्षोभ के कारण घाटियों में नमी बढ़ रही है जिसकी वजह से बादल फटने या अतिवृष्टि से भूस्खलन और तेज होगा।
विज्ञानी घाटियों से आबादी सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किए जाने की चेतावनी पहले ही दे चुके हैं।
गीली सतह दबाव बढ़ा देती है और भूस्खलन हो जाता है
विज्ञानियों का कहना है कि भूकंप के झटके लगने से पहाड़ों में छोटी-छोटी दरारें आ जाती हैं। इन दरारों में जब पानी जाता है तो अंदर मिट्टी नम होती है। इसके बाद बारिश से गीली सतह दबाव बढ़ा देती है और भूस्खलन हो जाता है।
भूकंप विज्ञानी इस संबंध में पहले ही चेता चुके हैं। इसके साथ ही गर्मी में सूखे जलस्रोत सूखी, खोखली नालियां बन गए हैं जो जरा सा दबाव पड़ते धसक जाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा दोगुना हो गया है।
बढ़ गया बादल फटने का खतरा
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान, उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने भूस्खलन के मामले में अपनी रिपोर्ट दी है। भूकंप के अलावा पश्चिमी विक्षोभ की वजह घाटियों में नमी भर रही है। इससे यहां बादल फटने का खतरा बहुत बढ़ गया है।
वाडिया ने इस संबंध में केंद्र सरकार को रिपोर्ट भी भेजी है। साथ ही घाटियों से सुरक्षित स्थानों पर आबादी शिफ्ट करने का भी मशविरा दिया गया है।
इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में जहां दो-तीन सालों में आग की घटनाएं हुई हैं, वहां भी भूस्खलन का खतरा है। इस संबंध में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र क्षेत्रों की जोनिंग भी करा रहा है। वाडिया के भू-भौतिकी समूह अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि भूकंप झटके सतह को ढीला करते हैं, ऐसे में बारिश से बढ़ा दबाव भूस्खलन बढ़ा देता है।