समुद्र तल से 12,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित फूलों की घाटी का क्षेत्रफल 87.5 वर्ग किमी है। घाटी की लंबाई पांच किमी और चौड़ाई दो किमी है। इसकी खोज इंग्लैंड के पर्वतारोही फ्रेंक स्माइट ने वर्ष 1933 में की थी।
फ्रेंक ने ‘वैली ऑफ फ्लॉवर’ नाम से एक किताब लिखी, जिसके बाद दुनिया भर में यह घाटी चर्चा में आई। आपको यह जाकर आश्चर्य होगा कि घाटी में फूलों की 521 प्रजातियां खिलती हैं।
यहां उच्च हिमालयी क्षेत्रों से बहने वाले झरने और दूर-दूर तक फैला भोजपत्र का जंगल है। चारों ओर से घाटी पर्वत श्रृंखलाओं से ढकी है।
यहां फूलों के साथ ही वन्य जीवों में स्नो लेपर्ड, कस्तूरा मृग, मोनाल, हिमालयन थार, ब्ल्यू शिप और ब्लैक बियर पाए जाते हैं। घाटी की विविधता को देखते हुए इसे वर्ष 2005 में विश्व धरोहर घोषित किया गया।
ऐसे पहुंचे फूलों की घाटी
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविंदघाट तक पर्यटक अपने वाहन से आ सकते हैं। यहां से छोटे वाहन से तीन किमी पुलना गांव तक पहुंचा जा सकता है। पुलना से करीब ग्यारह किमी पैदल और घोड़े से चलकर घांघरिया पहुंचा जाता है। यहां फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार है। घाटी के लिए दोपहर दो बजे तक ही प्रवेश मिल सकता है।
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविंदघाट तक पर्यटक अपने वाहन से आ सकते हैं। यहां से छोटे वाहन से तीन किमी पुलना गांव तक पहुंचा जा सकता है। पुलना से करीब ग्यारह किमी पैदल और घोड़े से चलकर घांघरिया पहुंचा जाता है। यहां फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार है। घाटी के लिए दोपहर दो बजे तक ही प्रवेश मिल सकता है।
फूलों की घाटी में इस वर्ष पूरे सीजन में सैलानियों की चहल-पहल बनी रही। कई सैलानी घाटी का दीदार करने के बाद माणा ट्रैक से बदरीनाथ की यात्रा पर भी गए। घाटी में सैलानियों के लिए बैठने और व्यू प्वाइंट की सुविधा है। मौसम ने साथ दिया तो घाटी में आगामी सालों में भी सैलानियों के भारी संख्या में उमडने की उम्मीद है।
यहां ग्रासलैंड भी है तो वन क्षेत्र भी। टिपरी ग्लेशियर से पुष्पावती नदी निकलती है, जो घाटी के एक किनारे से बह रही है।