राजद उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक बार फिर पार्टी के अंदर लोकतंत्र नहीं रहने की बात कह कर लालू प्रसाद की मुश्किलें बढ़ा दी है। राबड़ी की अध्यक्षता में हुई विधानमंडल की बैठक के एक दिन बाद रघुवंश प्रसाद का पार्टी लाइन से बाहर जाकर दिए गए बयान से उनकी नाराजगी साफ झलकती है। मारुति प्लांट में घुसा तेंदुआ, रेस्क्यू टीम ने 35 घंटे बाद पकड़ा
अपनी ही पार्टी के चुनावी प्रक्रिया को सवालों के दायरे में खड़ा करने वाले रघुवंश 2013 में भी लालू के जेल जाने की आशंका के बीच पार्टी की कमान राबड़ी देवी को सौंपे जाने के खिलाफ थे। आज जब एक बार फिर लालू परिवार पर सीबीआई का शिकंजा कसता जा रहा है और समय से पहले संगठन चुनाव कराने का फैसला किया गया है। ऐसे में उन्होंने संगठन चुनाव से ठीक पहले बड़ा बयान देते हुए पार्टी पर ही सवाल उठाए हैं।
रघुवंश ने साफ शब्दों में कहा है कि राजद के अंदर कोई लोकतंत्र नहीं है। सब कुछ पहले से तय होता है। पार्टी में संगठन चुनाव तो केवल नाम का है, पार्टी में कौन किस पद पर रहेगा या होता है ये सब पहले से ही तय होता है। लालू परिवार की पार्टी पर पकड़ को मजबूत रखने की कवायत के बीच रघुवंश के इस बयान ने पूरी पार्टी को सकते में डाल दिया है।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद के लिए एक बार फिर गंभीर परेशानियों का दौर शुरू हो रहा है। लालू ने राजद के अंदर अपने परिवार के आगे कोई और नेतृत्व कभी पनपने ही नहीं दिया। आज बिहार की जो राजनीतिक स्थितियां हैं, उनमें पहले की तरह अपनी पत्नी राबड़ी देवी के हाथों में दल की कमान सौंपकर लालू निश्चिंत नहीं हो सकते, क्योंकि अब उनके दल में भी पहले वाली बात नहीं रही कि वह जो कुछ कहेंगे या करेंगे, उसे उनके दल के सभी लोग चुपचाप मान लेंगे। अब तो कई मौकों पर उनके दल के नेताओं की अलग राय सामने आती है और यह लालू की मजबूरी है कि वह न तो कुछ कह सकते हैं और न ही कुछ कर पाते हैं।
इस बात की भी चर्चा है कि लालू एक बार फिर पार्टी का नेतृत्व अपनी पत्नी या बेटों को सौंप सकते हैं। संभव है, कुछ नेता इसका विरोध करें और लालू को इसका राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़े।