कल फ्रेंडशिप डे है यानी दोस्ती का दिन… इस दिन हम सभी अपने-अपने दोस्तों को उपहार देते हैं और अपनी दोस्ती की मिसाल देते नहीं थकते हैं। हालांकि, मित्रता क्या है ये हम में से कई लोग आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भूल चुके हैं। देखा जाए तो धनिष्ठ और सच्ची मित्रता क्या होती है यह हम प्राचीन काल की कथाओं से सीख सकते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी कहानियां बताने जा रहे हैं जिनसे आप प्रेरित जरूर होंगे और दोस्ती की परिभाषा शायद आपके लिए बदल जाएगी।
भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की कथा:
द्वापर युग में श्री कृष्ण अपनी नगरी द्वारका में राज कर रहे थे। वहीं, सुदामा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। एक बार उसकी पत्नी ने कहा कि वो जाकर श्री कृष्ण से मिलकार आए। लेकिन सुदामा के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने मना कर दिया। सुदामा की पत्नी ने पड़ोस में से थोड़े से चावल बांधकर सुदामा को दे दिए और इन्हें श्री कृष्ण को भेट करने के लिए कहा। चावल लेकर जब सुदामा श्री कृष्ण के महल पहुंचे तो उसने लोगों से श्री कृष्ण के महल का रास्ता पूछा। जब लोगों ने उनसे पूछा की वो कौन है तो सुदामा ने बताया कि वो श्री कृष्ण का मित्र है। यह सुनकर सभी हंसने लगे। लोगों की बातें सुनकर वह जैसे-तैसे श्री कृष्ण के महल तक पहुंचा। लेकिन वहां भी द्वारपालों ने उसका तिरस्कार किया। इसके बाद सुदामा ने द्वारपालो से श्री कृष्ण से मिलने के लिए कहा और उनका संदेश भी देने को कहा। जब द्वारपाल ने सुदामा का संदेश श्री कृष्ण तक पहुंचाया और सारा किस्सा सुनाया तो कृष्ण जी बिना मुकुट और नगें पैरों में ही सुदामा से मिलने पहुंच गए। लेकिन सुदामा को लग रहा था कि भगवान कृष्ण उससे नहीं मिलेंगे क्योंकि वो गरीब है। लेकिन जैसे ही कृष्ण अपने मित्र से मिले उन्होंने सुदामा को गले लगा लिया। जब कृष्ण ने अपने मित्र से मिले उनसे न मिलने की बात पूछी तो सुदामा ने उन्हें सब बता दिया। तब श्री कृष्ण ने कहा कि सुदामा आज भी उनके लिए वही मित्र है पहले था।
श्री राम और सुग्रीव की कथा:
श्री राम और सुग्रीव की मित्रता जग जाहिर है। एक बार हनुमान जी सुग्रीव को राम-लक्ष्मण के बारे में बताते हैं। उनके बारे में जानकर सुग्रीव उन्हें सम्मानपूर्वक अपनी गुफा में बुला लेते हैं। राम सुग्रीव से इस तरह गुफा में रहने का कारण पूछने लगते हैं। तब उन्हें मंत्री जामवंत राजा बली के बारे में बताते हैं। बता दें कि बली ने सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल दिया था। जामवंत ने कहा कि अगर वो बली को मारने में उनकी मदद करेंगे तो वानर सेना माता सीता को खोजने में उनकी सहायता करेंगे। लेकिन राम जी सुग्रीव की मदद करने से साफ मना कर देते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें सुग्रीव से किसी तरह का राजनैतिक सम्बन्ध नहीं रखना है। यह केवल स्वार्थ है। साथ ही कहा कि उनके स्वभाव में स्वार्थ की कोई जगह नहीं है। जब जामवंत ने श्री राम की बात सुनी तो उन्होंने माफी मांगी। जामवंत ने राम जी से कहा की राम जी उन्हें कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे वानर योनी के प्राणी और उनके जैसे उच्च मानवजाति के बीच संबंध हमेशा बना रहे। तब राम जी ने कहा था कि मित्रता ही एक ऐसा नाता है जो योनियों, जातियों, धर्मो, उंच नीच से परे मनुष्यों को साथ जोड़ता है। राम जी ने कहा कि वो सुग्रीव से ऐसा रिश्ता रखना चाहते हैं जिसमें कोई शर्त न हो। सिर्फ प्यार का ही आदान-प्रदान हो। राम जी सुग्रीव के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखते हैं। यह देखकर सुग्रीव भाव-विभोर हो जाते हैं। राम सुग्रीव के साथ दोस्ती की प्रतिज्ञा लेते हैं। इसी तरह दोनों के बीच घनिष्ट मित्रता की शुरुआत होती है।
हनुमान जी और शनिदेव की कथा:
एक बार हनुमान जी श्री राम के किसी काम में व्यस्त थे। हनुमान जी ध्यानमग्न थे। उस जगह से शनिदेव जी गुजर रहे थे। रास्ते में उन्हें हनुमान जी दिखाई दिए। उन्हें देख शनिदेव को शरारत सूझ गई। उन्होंने हनुमान के कार्य में विघ्न डालना चाहा। हनुमान जी ने उन्हें चेतावनी भी की। लेकिन शनिदेव नहीं मानें। शनिदेव को रोकने के लिए हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूंछ से जकड़ लिया। शनिदेव ने खुद को हनुमान जी से छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानें। इस दौरान शनिदेवजी को काफी चोट आई। लेकिन वो खुद को हनुमान जी से छु़ड़ा नहीं पाए। जब हनुमान जी का राम कार्य खत्म हुआ तो उन्होंने शनिदेव का आजाद कर दिया। शनिदेव को उनकी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने हनुमान जी से माफी मांगी। साथ ही उन्होंने हनुमान जी से यह भी कहा कि वो कभी आगे से ऐसा नहीं करेंगे। इसके बाद शनिदेव ने कहा कि श्री राम और हनुमान जी के भक्तों को उनका विशेष आशीष मिलेगा। वहीं, हनुमान जी ने शनिदेव जी ने घावों पर सरसो का तेल लगाया। इस से इनके घाव ठीक हो गए। इस पर शनिदेव ने कहा कि अब से जो भी उन पर शनिवार के दिन सरसों का तेल चढ़ाएगा तो उसे मेरा विशेष आशीष प्राप्त होगा।