राजीव श्रीवास्तव, लखनऊ: भारत के शायद ही किसी और प्रदेश में राजनैतिक तापमान किसी भी चुनाव कि आहट के एक साल पहले गर्माने लगता हो पर उत्तर प्रदेश इस बात में अपवाद ही है. उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव २०२२ में होने हैं, बावजूद इसके यहाँ का राजनैतिक तापमान अभी से उछाल लेने लगा है. राज्य सभा कि दस सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव 9 नवम्बर को होने है.
एनालिसिस
सभी पार्टियों के विधायकों की संख्या के हिसाब से यह लगभग तय माना जा रहा है कि बीजेपी 10 में से 8 सीटों पर लगभग निर्विरोध विजय प्राप्त कर लेगी वहीँ समाजवादी पार्टी भी अपने खाते में एक सीट आसानी से ले आएगी. दसवी सीट के लिए बसपा ने रामजी गौतम को राज्य सभा का प्रत्यासी बनाया है तो सपा ने प्रो रामगोपाल यादव को अपना प्रत्यासी बनाया है. वही बीजेपी ने 8 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जिसमे केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, बीजेपी के राष्ट्रिय महामंत्री अरुण सिंह व सपा से भाजपा में एक साल पहले आये पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर प्रमुख हैं.
यह तीनों प्रत्याशी पहले से ही इन सीटों से राज्य सभा सदस्य हैं. इसके अलावा 2022 विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखकर बीजेपी ने सामाजिक और जातीय समीकरण को साधते हुए दो ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, एक शाक्य, एक दलित और एक लोध प्रत्याशी मैदान में उतारा है.
संख्या बल के आधार पर बीजेपी चाहती तो अपना नौवा प्रत्यासी उतार सकती थी पर तमाम अटकलों की बींच पार्टी ने ऐसा नहीं किया. वहीँ दूसरी ओर सबको चौंकाते हुए पेशे से कॉर्पोरेट वकील प्रकाश बजाज ने निर्दलीय अपना नामांकन दाखिल कर दिया. यानी अगर जांच के बाद पर्चा सही पाया जाता है तो दसवी सीट के लिए चुनाव निश्चित है. उससे भी ज्यादा चौकाने वाली बात यह रही कि बजाज के प्रस्तावकों में सपा के विधायक शामिल रहे. यानि मतलब साफ़ है कि लोक सभा चुनाव में गठबंधन की साथी रही बसपा के प्रत्याशी रामजी गौतम के लिए जो राह बीजेपी द्वारा 9 वा प्रत्याशी न खड़ा करके आसान लग रही थी वह अब काँटों भरी होगई.
मतलब साफ़ है कि सपा भाजपा और बसपा के एक अलिखित गठबंधन को एक्स्पोस करना चाह रही थी वही बसपा की राह कठिन करना चाह रही थी. यह बात आज और भी पुख्ता हो गयी जब बसपा के 5 विधायकों ने नाटकीय तरीके से रामजी गौतम के प्रस्तावक के रूप में अपने को अलग करने की घोषणा कर दी और अपने को सपा के साथ खड़ा करके बसपा को एक बड़ा झटका दिया है.
हाँलांकि यह तो चुनाव अधिकारी ही तय करेंगे कि बसपा के बाग़ी विधायक अपने आप को प्रस्तावक के रूप में अलग कर सकते हैं कि नहीं पर 22 के विधान सभा चुनाव के लिए चुनावी बिसात बिछना शुरू होगई है. यूँ तो बसपा को इस तरह का राजनैतिक अनुभव सपा द्वारा ही पहले भी मिला है परन्तु लम्बे समय से शांत बैठे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस राजनीतिकी दांव से सबको चौंका जरूर दिया है. यूँ तो इस तरह कि उठा-पठक करने के लिए अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव खासे प्रसिद्ध रहे हैं पर उनकी राजनैतिक विरासत की यह झलक अखिलेश में पहली बार देखने को मिली है.
अभी तक इस पूरे मामले में बसपा की प्रमुख मायावती या अन्य किसी बड़े नेता ने कोई बयान नहीं दिया है पर अब बसपा का अगला कदम क्या होगा यह देखना भी दिलचस्प होगा. यदि सभी प्रत्याशियों के पर्चे पास हो जाते हैं तो दसवी सीट पर चुनाव निश्चित है ऐसे में कौन किसे वोट देगा इससे 2022 विधान सभा चुनाव की बिसात भी साफ़ होगी.
लम्बे समय से बसपा प्रमुख मायावती पर यह अरोप भी लग रहे थे कि उनकी पार्टी बीजेपी के तरफ थोडा सॉफ्ट रह रही है. बीजेपी द्वारा 9 वा प्रत्याशी न खड़ा करके इस बात को बल भी मिल रहा था क्यूंकि बसपा के पास अधिकारिक तौर पर 19 ही विधायक थे ऐसे में एक भी अधिक प्रत्याशी खड़े होने की दशा में बसपा प्रत्याशी का जीत पाना एकदम अशंभव ही था. भाजपा ने अतरिक्त प्रत्याशी न खड़ा करके बसपा का रास्ता साफ़ भी कर दिया था. पर शायद अखिलेश यादव इसी बात का इंतज़ार कर रहे थे. बीजेपी के 9 वे प्रत्याशी के ना आते ही प्रकाश बजाज को निर्दलीय के रूप में बसपा और भाजपा शायद दोनों के ही मंसूबे पर पानी फेर दिया.
फिलहाल राज्य सभा चुनाव का नतीजा कुछ भी हो एक बात तो तय है 2022 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी के लिए 2017 जैसा परफॉरमेंस दें पाना टेढ़ी खीर ही साबित होगा.