सरकारी क्षेत्र के बैंकों को तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय मदद देने के साथ केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि इन बैंकों के कामकाज में आमूल चूल बदलाव आए। इसके लिए इन बैंकों के सामने कई तरह के नए मानदंड रखे गए हैं। अब बड़े उद्योगों को कर्ज देने से लेकर आम ग्राहकों को सामान्य बैंकिंग सेवा देने में भी उन्हें पारदर्शिता के साथ ही ज्यादा पेशेवर अंदाज दिखाना होगा। सरकार की तरफ से इन बैंकों को अब विदेशों में कारोबार को भी समेटने का निर्देश दिया गया है। साथ ही हर तरह के गैर बैंकिंग कारोबार से हाथ खींचने को कहा गया है।
वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) के सचिव राजीव कुमार ने बताया कि बैंकों को हर गांव के पांच किलोमीटर के दायरे में बैंकिंग सेवा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने होंगे। इसका मतलब यह हुआ कि नक्सल प्रभावित या दूरदराज के पहाड़ों में स्थित हर गांव को अब बैंकिंग सेवा मिलेगी। लेकिन बैंकों को अब विदेशी घाटा उठाने वाले शाखाओं को बंद करना होगा या उनका विलय करना होगा। यह काम पहले ही शुरू हो चुका है और तकरीबन 41 शाखाओं को या तो बंद किया गया है या फिर उन्हें किसी दूसरे बैंक की शाखा में मिला दिया गया है। सभी बैंकों को कहा गया है कि वे फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या से निपटने के लिए अलग से निकाय स्थापित करें। इस निकाय से ही संभावित एनपीए की पहचान करवाने और बकाए कर्ज की वसूली का काम करवाया जाएगा। 250 करोड़ रुपये से बड़े कर्जो की अलग से निगरानी करवाई जाएगी।
बड़ी परियोजनाओं को एकमुश्त कर्ज नहीं दिया जाएगा बल्कि उनके कार्य विस्तार के आधार पर कर्ज की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। जिस रफ्तार से परियोजना पूरी होगी, उसी रफ्तार से कर्ज की राशि दी जाएगी। बैंकों के बोर्ड के लिए भी कुछ नए कायदे कानून बनाए गए हैं, जिनका पालन करने में इनके पसीने छूट सकते हैं। मसलन, निदेशक बोर्ड के स्वतंत्र सदस्यों की जिम्मेदारी तय की गई है। बोर्ड को कहा गया है कि वे स्वतंत्र सदस्यों के कामकाज की भी समीक्षा करें। जीएसटी में पंजीकरण कराने वाले छोटे व मझोले उद्योग-धंधों को आसानी से कर्ज देने के लिए अलग से नियम बनाने को कहा गया है। एसएमई उद्योगों को ज्यादा कर्ज देने शाखाओं में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति करने को कहा गया है जो 20 सबसे बड़े ऐसे उद्यमियों से सीधे संपर्क में रहेगा। देश में इस श्रेणी की 3,319 बैंक शाखाएं हैं।
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