विवाह में तलाक और पति के पेंशन के मामले में केरल और बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो बहुत महत्वपूर्ण फैसले किए हैं. दरअसल केरल हाईकोर्ट ने तलाक के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि असफल विवाह के रिश्ते में रहने के लिए कोई भी पुरुष या महिला बाध्य नहीं है और ना ही कोई इन्हें मजबूर कर सकता है. HC ने आगे कहा कि ऐसे रिश्ते आपसी सहमति से तलाक देने से मना करना ‘क्रूरता’ माना जाना चाहिए. 
कोर्ट ने ऐसा पति- पत्नि की एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा इस याचिका में पत्नी ने क्रूरता का हवाला देते हुए पति को तलाक देने के कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. याचिका की सुनवाई कर रहे जज जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक ने अपने फैसले में कहा कि अगर सारी कोशिशों के बाद भी शादी का रिश्ता असफल होता है तो ऐसे में किसी एक का तलाक देने से इनकार करना क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है.
जज मुस्तान की खंडपीठ ने आगे कहा कि अगर शादी के रिश्ते में रह रहे दो महिला-पुरुष के बीच अनबन का सिलसिला जारी है और आगे सुधार की गुंजाइश नहीं है तो दोनों में से कोई भी किसी एक को इस कानूनी बंधन में बने रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है.
2015 में हुई थी शादी
इस मामले की याचिका केरल हाईकोर्ट में तह पहुंची जब पत्नी ने क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के नेदुमनगड फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले दंपति की शादी साल 2015 में हुई थी. इस रिश्ते में पुरुष इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर का काम करता है जबकि पत्नी कन्नूर में पोस्ट ग्रेजुएट डेंटल की छात्रा थी. इस मामले में पत्नी ने आरोप लगाया है कि पति झगड़ा करता है और उसे महिला के मां और बहन के साथ संबंध रखना पसंद नहीं था. यही कारण है कि महिला ने तलाक की अपील की. वहीं कोर्ट ने कहा कि विवाह के शुरुआती दिनों में साथ समय ना गुजारने और दोनों के अलग अलग रहने के कारण उनके बीच इमोशन बॉन्डिंग डेवलप नहीं हो पाई है.
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