पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 ज़िलों की जिन 73 सीटों पर आज मतदान होने हैं उनमें से ज़्यादातर सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन, बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुक़ाबला है. इसके अलावा कई सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल की भी मज़बूत दावेदारी है.
पहले चरण के लिए कुल 840 उम्मीदवार मैदान में हैं. चुनाव में यूं तो कई मुद्दे महत्वपूर्ण हैं लेकिन माना जा रहा है कि जातीय और धार्मिक समीकरण भी चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे. जानकारों का कहना है कि राजनीतिक दलों ने इसी हिसाब से टिकट भी बाँटे है, भले ही कहा जाए कि चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं.
यूपी की वो महिलाएं जिनके सामने किला जीतने की चुनौती
बात यदि पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो इन सीटों पर सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था. इन 73 सीटों में सपा को 24, बसपा को 23, बीजेपी को 12, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं.
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी और विधानसभा के हिसाब से देखें तो उसे 60 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी को उम्मीद है कि वो 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराएगी लेकिन जानकारों को ऐसा नहीं लगता.
पिछले कई दिनों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा कर रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण शुक्ल कहते हैं, “ये चुनाव पूरी तरह से तीन मुद्दों पर लड़े जा रहे हैं- कास्ट, कम्युनल और कैंडिडेट. बीजेपी समेत सभी पार्टियों ने इन्हीं आधार पर टिकट बांटे हैं और इन्हीं के आधार पर जीतना चाहती हैं. लेकिन सभी दलों में आंतरिक असंतोष है जो कि कई जगह निर्णायक भी साबित हो सकता है.”
श्रवण शुक्ल कहते हैं कि 2014 से तुलना करें तो निश्चित तौर पर बीजेपी को काफी नुक़सान होने वाला है लेकिन 2012 के विधान सभा चुनाव के हिसाब से देखें तो बीजेपी फ़ायदे में रहेगी. श्रवण शुक्ल ये भी कहते हैं कि चुनाव में अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की भी कड़ी परीक्षा होनी है क्योंकि 2002 के बाद पार्टी पहली बार अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है.
बीजेपी से नाराज़गी के चलते जाट मतदाताओं की सहानुभूति भी उनके साथ है. इस इलाक़े के 11 ज़िलों में जाट मतदाताओं की प्रभावी भूमिका रहती है.
पश्चिम बंगाल के बजट में नोटबंदी प्रभावितों के लिए ढाई सौ करोड़
हालांकि चुनावी मुद्दों के बारे में पार्टियों की अलग राय है. बीजेपी प्रवक्ता हरीश श्रीवास्तव कहते हैं, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्या और क़ानून व्यवस्था मुख्य चुनावी मुद्दे हैं. गन्ना किसानों को उनका बकाया राज्य सरकार ने अभी तक नहीं दिलाया है जिसे लेकर किसानों में नाराज़गी है.”
वहीं कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि इस चरण के मतदान को बीजेपी जाति और संप्रदाय पर आधारित बनाना चाहती है लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है.
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी कहते हैं, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे समृद्ध इलाक़ा है लेकिन पिछले कुछ समय से इसे कुछ लोगों की नज़र लग गई है. ख़ासकर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से इस इलाके को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंका गया और बीजेपी के कुछ नेताओं का उसमें नाम आया, वो इस चुनाव में भी एक अहम मुद्दा है.”
जाट मतदाताओं के अलावा अल्पसंख्यक मतों पर भी सबकी निग़ाहें हैं जो कि इस इलाक़े में बीस फ़ीसद से ज़्यादा हैं. बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियों ने अल्पसंख्यकों को टिकट बाँटने में ख़ूब दरियादली दिखाई है.
जानकारों का कहना है कि बीजेपी को इस वजह से अल्पसंख्यक वोट भले ही न मिलें लेकिन दूसरे दलों में ये वोट बँटने से बीजेपी को फ़ायदा भी हो सकता है. हालांकि इस तरह की लड़ाई कुछ ही सीटों पर है.
बहरहाल, अब देखना ये है कि मतदाता जाति और धर्म को ही मतदान का आधार बनाता है या फिर अपने नेताओं को अन्य योग्यताओं के आधार पर तौलता है.