आज गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है. ऐसे में हम आपको बता दें कि गणेश जी ने आठ अवतार लिए थे जो उन्होंने पापियों के नाश के लिए लिये थे. तो आज हम आपको उनके कुछ अवतारों से जुडी कथा बताने जा रहे हैं.
वक्रतुंड – पौराणिक मतों के अनुसार गजानन ने अपने इस रूप में राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों को मारा था. कहते हैं ये राक्षस शिव जी का परम भक्त था और उनकी तपस्या करके उसने उनसे वरदान पाया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा. मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को तंग करना शुरू कर दिया. उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे. सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए. शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे. देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड के रुप में मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया. वही मत्सरासुर बाद में गणपति का भक्त हो गया.
एकदंत – कथा के अनुसार महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की. वह च्यवन का पुत्र कहलाया. मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली. शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया. शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया. सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे. सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की. तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए. उनकी चार भुजाएं, एक दांत, बड़ा पेट और उनका सिर हाथी के समान था. उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश और एक खिला हुआ कमल था. एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया.
महोदर – कहते हैं जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को देवताओं के खिलाफ खड़ा किया. मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की. तब गणेश ने महोदर अवतार लिया. महोदर यानी बड़े पेट वाले. वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया.