वैसे तो आजादी के एक दिन पहले फिरंगियों के चंगुल से देश की आजादी का बिगुल बज गया था, लेकिन 15 अगस्त 1947 की सुबह का नजारा खास था। गुलामी की बेड़ियों से आजादी का जश्न दुकानों में गरमा गरम जलेबियों और मोतीचूर के लड्डुओं की खुशबू फिजां में आजादी की मिठास घोल रही थीं। घरों और हांथों में झंडा और आजादी के तराने हर ओर सुनाई दे रहे थे। आजादी की सुबह को देखने वाले पूर्व महापौर डॉ.दाऊजी गुप्ता ने कुछ ऐसी ही दास्तां बता कर आजादी के जश्न की यादें ताजा की, जो दैनिक जागरण आपको बता रहा है।
झंडा ऊंचा रहे हमारा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा..
दाऊजी ने बताया कि 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि से ही घरों में उल्लास का माहौल था। मैं तो गणेशगंज में रहता था। मुहल्ले के लोगों के साथ प्रभातफेरी की तैयारी कर रहा था। 15 अगस्त की भोर के चार बजे थे। सभी अपने-अपने घरों से प्रभात फेरी के लिए निकल रहे थे। सूर्योदय के साथ सड़क पर ऐसी चहल-पहल शुरू हुई कि निकलने की जगह तक नहीं बची। एक दूसरे को गले लगा कर बधाई देने का क्रम भी चलता था। झंडा ऊंचा रहे हमारा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा..गीतों से गुंजायमान वातावरण के बीच लोग भारत माता की जय के नारे भी लगा रहे थे। दुकानों पर गरमा-गरम जलेबियां निकल रही थीं तो दुकानदार भी फ्री में उन्हें बांट रहे थे। गणेशगंज के लोगों ने पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए अपने घरों में रहने की व्यवस्था की थी। दोपहर हुई तो पता चला कि सभी को एक कक्षा आगे कर दिया गया था। मैं भी कक्षा पांच से कक्षा छह में कर दिया गया था। स्वतंत्रता की खुशी दो गुनी हो उठी थी।
लग रहे थे भारत माता की जय के नारे :
जिस आजादी का इंतजार था, उसकी सुबह को देखने की बेकरारी को शब्दों में बयां करना मुश्किल था। दोपहर बाद तक सभी बाजार गुलजार हो चले थे। सभी जगह भारत माता की जय के नारे लग रहे थे। मैं भी लोगों को बधाई दे रहा था तो लोगों को घरों से निकालने की जिम्मेदारी भी मुझे दी गई थी। हर ओर मिठाइयां बंट रही थी तो दूसरी ओर महिलाओं के अंदर भी इस आजादी का एहसास नजर आ रहा था। कई दिनों तक आजादी की बाते आम हो चुकी थी। अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़ना का जिक्र करने से भी कोई बाज नहीं आ रहा था। आजादी के दिन पता चला कि स्कूल में छुट्टी हो गई। फिर क्या था, दोस्तों के साथ घर आया तो हर ओर झंडे लगे हुए थे। मैं भी घर निकल गया। आजादी की खुशी ऐसी थी बड़े भी बच्चों को नहीं रोक रहे थे। कोई लड्डू बांट रहा था तो कोई होटल पर गरमा-गरम चाय बनाकर उसे बांट रहा था। यह एक ऐसा दिन था जब सभी के अंदर देशभक्ति की भावना एक समान थी।
सभी ने खोल दिए दरवाजे:
आजादी के दिन पाकिस्तान और सिंध से आए शरणार्थियों को पनाह देने की उत्सुकता सभी ने नजर आई। सभी ने उनको अपने यहां रखने के लिए घरों के दरवाजे खोल दिए थे। उन्हें फिर आलमबाग के चंदरनगर इलाके में ठहराया गया। सभी अपने-अपने घरों से भोजन बनाकर लाते थे। अब तो सब देश के हो गए हैं। कोई शरणार्थी नहीं बचा। खास थी वह सुबह :
15 अगस्त 1947 की वह सुबह बहुत खास थी। जब राज्यपाल सरोजनी नायडू ने दिल्ली से आकर झंडा फहराया था। सुबह से ही विधानभवन रोड के आसपास लोगों का हुजूम था। हर कोई इस ऐतिहासिक पलों का गवाह बनना चाहता था। सात बजे के करीब सरोजनी नायडू चारबाग स्टेशन पहुंची, तो हजारों लोग पहले से ही उनके स्वागत में खड़े थे। स्टेशन से सीधे राजभवन पहुंची, फिर विधानभवन की ओर निकल पड़ी। जैसे ही घड़ी की सुई ने आठ बजाया राज्यपाल नायडू ने तिरंगा फहराया। हजारों लोग खुशी से तिरंगे को निहार रहे थे। अंग्रेजों से लम्बी लड़ाई के बाद मिली आजादी की खुशबू में हर कोई सराबोर हो उठने को बेकरार था। ढोल और नगाड़ों के बीच दुकानदारों ने लोगों को मिठाईयां बांटी। सिनेमाघरों में निश्शुल्क फिल्मी दिखाई गई। आजादी का जश्न मनाने को हर तरफ कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया।
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