मौसिकी से मोहब्बत ने इन्हें गजल और भजन गायकी का मेयार बना दिया। बॉलीवुड समेत तमाम जुदा मंचों से जयपुर घराने की आवाज का जादू कुछ यूं बिखरा कि दुनिया भर के संगीत प्रेमियों में हुसैन बंधु पहचान के मोहताज नहीं। 1959 में आल इंडिया रेडियो से गायन की दुनिया में कदम रखने वाली अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की जोड़ी सफलता के शिखर पर भी अपनी हर प्रस्तुति को पहला मानकर अंजाम देती है। रविवार को यह जोड़ी एक कार्यक्रम के सिलसिले में शहर में थी। इस मौके पर गीत, संगीत और गायकी पर उन्होंने दिल खोलकर बातें भी कीं। इस दौरान पाक कलाकारों पर रोक की मांग को जायज ठहराया।
गजल और भजन गायन की इस धुरंधर जोड़ी ने मौसिकी की हर विधा की महत्ता बताई। उस्ताद मोहम्मद हुसैन ने कहा कि गजल हो या भजन, गीत हो या सूफी, सबकी अपनी खासियत है। ऐसे में इनकी तुलना अच्छी बात नहीं है। फनकार के लिए जरूरी है कि जो गाए, बस मन से गाए। अहमद हुसैन बोले, काम पर ध्यान दो तो नाम खुद-ब-खुद हो जाएगा। कहा कि उस्ताद कामिल (उत्तम) हो, शागिर्द आमिल (अमल करने वाला) हो और कुदरत शामिल हो तब एक मुकम्मल फनकार बनता है। मोहम्मद हुसैन ने कहा कि गायक को पानी की तरह होना चाहिए। मर्म समझाते हुए अहमद हुसैन ने बताया कि हर विधा की अपनी खासियत है। ऐसे में गायक में यह गुण जरूरी है। भजन में भक्तिरस, गजल में तवक्कुल, गीत में रूमानियत और सूफी गायन में मार्फत का रंग न हो तो गायक श्रोताओं पर प्रभाव नहीं छोड़ सकता। वर्तमान में गजल गायकी पर अहमद हुसैन ने कहा कि जो फैशन मान आया वो खत्म हुआ, गजल नहीं। फिर ऐसे लोगों पर तंज कसा-
कौन समझाए बेसऊरों को
अक्स पानी में तर नहीं होता।
दर्द बढ़कर दवा तो होता है
ऐब बढ़कर हुनर नहीं होता॥
फिराक की जमीन से बेहद लगाव
ये जोड़ी अब छह से सात बार गोरखपुर आ चुकी है। फिराक और प्रेमचंद की इस धरती को इन्होंने अदबी साहित्य का तीर्थ करार दिया। कहा कि इतनी बार इस मुकद्दस जमीं पर आना हमारी खुशनसीबी है। हुसैन बंधुओं ने तुलसी, सूर, मीरा और रसखान बेहद पसंद हैं।
पाक के गायकों पर लगाई जाए रोक
हुसैन बंधुओं ने बॉलीवुड कलाकारों और गायकों की ओर से पाकिस्तानी गायकों पर रोक लगाने की मांग का समर्थन किया। कहा कि जब पाक कलाकार यहां आते हैं तो काफी मेहमानवाजी होती है और वे यहां से कमाकर लौटते हैं। यहां भी काबिल कलाकार हैं, पर वहां से बुलावा नहीं आता।