गुलाब की खेती चमोली जिले के चीन सीमा से लगे जोशीमठ ब्लॉक के ग्रामीणों के लिए आर्थिकी का सबल जरिया बन गई है। यात्रा सीजन होने के कारण एक-एक गुलाब सौ-सौ रुपये तक में बिक रहा है। साथ ही गुलाब के तेल से भी ग्रामीणों की अच्छी आमदनी हो रही है। अब तक ग्रामीण गुलाब का तेल बेचकर तीन लाख रुपये की कमाई कर चुके हैं।
जोशीमठ ब्लॉक के भोटिया जनजाति बहुत ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अन्य फसलों के साथ गुलाब की खेती पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। असल में यह नकदी फसल बाहुल्य क्षेत्र है। लोग यहां आलू, राजमा व चौलाई की खेती के अलावा सेब, आड़ू, खुबानी, पुलम आदि की बागवानी भी करते हैं।
गांवों के जंगल से सटे होने के कारण फसलों को जंगली जानवर तबाह कर देते हैं। रही-सही कसर पूरी कर देता है मौसम। ऐसे में फसल का दो तिहाई हिस्सा भी बामुश्किल काश्तकारों को मिल पाता है। इसी को देखते हुए काश्तकारों ने गुलाब की खेती शुरू की है।
उन्होंने गुलाब के पौधे खेतों के चारों ओर लगाए हैं और बीच में बोई जाती हैं नकदी फसलें। गुलाब के पौधों पर कांटे होने के कारण यह घेरबाड़ का काम भी कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि गुलाब को बाजार भी हाथोंहाथ मिल रहा है।
ग्रामीण गुलाब से तेल भी निकाल रहे हैं। सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई (देहरादून) की ओर से काश्तकारों को 13 आसवन संयंत्र निश्शुल्क दिए गए हैं। इनसे काश्तकारों ने इस साल 35 क्विंटल गुलाब जल तैयार किया है। सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ी कंपनियां काश्तकारों से सीधे गुलाब जल खरीद रही है। साथ ही स्थानीय बाजार में भी गुलाब जल की खासी मांग है। बदरीनाथ व हेमकुंड साहिब आने वाले यात्री गुलाब जल को हाथोंहाथ खरीद रहे हैं।
गुणवत्ता में उत्तम दमिश्क, हिमरोज व नूरजहां
इन गांवों में हो रही गुलाब की खेती
बना रहे हैं गुलाब तेल
परसारी निवासी किसान नरेंद्र सिंह बिष्ट के मुताबिक गुलाब की खेती हमारे लिए वरदान साबित हो रही है। मैं अब तक चार क्विंटल गुलाब जल का उत्पादन कर चुका हूं। इसके अलावा संयंत्र से गुलाब का तेल भी बनाया है। इससे मुझे एक लाख रुपये की आमदनी हुई है।
वहीं, सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई देहरादून के वैज्ञानिक सुनील साह के अनुसार काश्तकार गुलाब की खेती कर हजारों बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं। गुलाब जल के साथ-साथ गुलाब के तेल का उत्पादन भी काश्तकार करने लगे हैं।