गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में मुख्य सचिव राजीव कुमार ने मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा, एचओडी एनेस्थीसिया बाल रोग विभाग डॉ. सतीश, प्रभारी 100 बेड एईएस वार्ड डॉक्टर कफील खान व पुष्पा सेल्स के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की संस्तुति की है। इन सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।
इसके अलावा प्रकरण में लापरवाही व भ्रष्टाचार के मामले में आरोपियों के खिलाफ अनुशासनिक व भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सभी दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 व 11 अगस्त को बच्चों की मौत से जुड़े मामले की जांच मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति को सौंपी थी। मुख्य सचिव ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी। बुधवार को इसके महत्वपूर्ण अंश सरकार ने सार्वजनिक किए। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए निर्देशित किया है कि दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों को किसी भी दशा में बख्शा न जाए और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
दोषियों के खिलाफ होगी यह कार्रवाई
– मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. राजीव मिश्रा, ऑक्सीजन के प्रभारी व एचओडी एनेस्थीसिया बाल रोग विभाग डॉ. सतीश, नोडल प्रभारी 100 बेड एईएस वार्ड डॉक्टर कफील खान व तथा पुष्पा सेल्स प्रा. लि. लखनऊ के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई।
– प्रधानाचार्य डॉ. राजीव मिश्रा व उनकी पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला , मेडिकल कॉलेज के लेखा विभाग के कर्मचारियों के साथ चीफ फार्मेसिस्ट गजानन जायसवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम से जुड़ी धारा के अंतर्गत कार्रवाई।
– समिति ने अनुत्तरदायी आचरण, कर्तव्यहीनता तथा कर्मचारी आचरण नियमावली के प्रतिकूल आचरण के लिए डॉ. राजीव मिश्रा, डॉ. सतीश, डॉ. कफील खान, गजानन व सहायक लेखाकार के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई।
– बीआरडी मेडिकल कॉलेज में औषधि एवं रसायनों की आपूर्ति की पिछले तीन वर्षों का सीएजी से स्पेशल ऑडिट।
– डॉ. कफील खान द्वारा मुख्य चिकित्साधिकारी गोरखपुर के समक्ष तथ्यों को छिपाकर शपथ-पत्र दाखिल करने और इंडियन मेडिकल काउंसिल के नियमों के विपरीत कार्य करने के लिए आपराधिक कार्रवाई।
– मुख्य सचिव ने राजकीय मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों व विशेषज्ञों की कमी को दूर करने के लिए परास्नातक स्तर पर कैंपस साक्षात्कार के आधार पर भर्ती की प्रक्रिया का प्रावधान करने की सिफारिश की है।
– चिकित्सा एवं स्वास्थ्य निदेशालय से जापानीज इन्सेफेलाइटिस कार्यक्रम के अंतर्गत डिप्लोमा ऑफ चाइल्ड हेल्थ के अभ्यर्थियों के उत्तीर्ण होने के बाद पीडियाट्रिक्स इन्टेसिव केयर यूनिट पर ही उनकी तैनाती सुनिश्चित करने को कहा है।
– सीनियर रेजीडेंट के वेतनमान व परिलब्धियां अन्य समकक्ष संस्थानों में प्रदान किए जा रहे वेतनमान व परिलब्धियों से बेंचमार्क करते हुए निर्धारण किया जाए। सभी पदों को अगले तीन महीने में भरा जाए।
– जूनियर एवं सीनियर रेजीडेंट तथा स्टाफ नर्सों को नवजात शिशुओं की उचित देखरेख में दक्ष बनाने के लिए फैसिलिटी बेस्ड न्यू बॉर्न केयर का प्रशिक्षण तुरंत तथा लगातार दिलाया जाए।
– सभी मेडिकल कॉलेजों में प्रिंसिपल व अधीक्षक पदों पर सक्षम व दक्ष अधिकारियों की नियमित नियुक्ति जल्द से जल्द हो।
– सिक न्यू बार्न केयर यूनिट, न्यू बार्न इन्टेंसिव केयर यूनिट एव पीडियाट्रिक्स इन्टेंसिव केयर यूनिट के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोटोकॉल व चेक लिस्ट की व्यवस्था हो।
– इन्फेक्शन प्रिवेंशन प्रोटोकॉल का नियमित पालन किया जाए।
– एईएस के मामले में रोक की समुचित जांच की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि पुष्ट डायग्नोसिस के आधार पर इलाज हो सके।
– जांचों के लिए पैथालॉजिकल लैबों की पर्याप्त व्यवस्था की जाए।
– संस्थागत व्यवस्था में सुधार के लिए सभी चिकित्सीय इकाइयों द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल का अनुपालन हो रहा है या नहीं व अवस्थपना सुविधाएं उपलबध हैं या नही, इसकी पड़ताल के लिए नियमित रूप से थर्ड-पार्टी ऑडिट हो।
– नियमित टीकाकरण में जेई को जोड़ा जाए
– चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण द्वारा हर साल अप्रैल से एक समयबद्ध 360 डिग्री इन्फार्मेशन एजुकेशन कम्युनिकेशन विहैवियर चेंज कम्युनिकेशन कार्ययोजना लागू करे। इसमें जेई व एईएस की रोकथाम के संबंध में ज्वर होने की दशा में तात्कालिक प्रभाव से उपचार के लिए निकटवर्ती चिकित्सालयों में जाने के लिए प्रेरित किया जाए।
– चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन राजकीय मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सा संस्थानों में सुचारु संचालन के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन चिकित्सालयों के अनुसार रोगी कल्याण समिति का गठन किया जाए।
– औषधियों व अन्य आवश्यक मदों में यथार्थपरक, व्यावहारिक व सटीक बजटीय प्रावधान किया जाए। इसके अलावा तीन महीने के लिए आवश्यक अग्रिम बजट की व्यवस्था की जाए।
– मेडिकल कॉलेज की विभिन्न व्यवस्थाओं के लिए वार्षिक अनुरक्षण नीति बनाई जाए। इसके लिए व्यावहारिक बजटीय प्राविधान व वार्षिक निर्धारित अनुपात में बढ़ोत्तरी की व्यवस्था भी की जाए।
– चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन राजकीय मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सा संस्थानों में मेडिकल रिकार्ड्स से लेकर लेखा प्रणाली व भुगतान व्यवस्था को कंप्यूटरीकृत किया जाए।
– चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत एक इमरजेंसी रेस्पांस टीम का गठन हो।
– एईएस व जेई प्रभावित जिलों का एक विस्तृत एक्शन प्लान बनाकर न्यू बॉर्न केयर कॉर्नर, न्यू बार्न स्टेबलाइजेशन यूनिट, सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट तथा नियोनेटल इन्टेसिव केयर यूनिट व्यवस्था को मजबूत किया जाए।
– एंबुलेंस द्वारा रेफरल व्यवस्था को और मजबूत किया जाए।
– राजकीय मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सा संस्थानों में हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन व चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाए। इसमें पीजीआई चंडीगढ़, लखनऊ व एम्स के विशेषज्ञों को शामिल किया जाए।
– चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों तथा चिकित्सा संस्थानों के लिए एक चिकित्सा प्रबंध का प्रशासनिक कैडर बनाया जाए।
– आपूर्ति व्यवस्था के तहत चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सा संस्थानों में सभी इकाइयों पर ई-प्रोक्योरमेंट, गवर्नमेंट ई-मार्केट (जीईएम) के माध्यम से प्रोक्योरेमेंट व निविदा डाक्यूमेंट तथा अनुबंध पत्र का मानकीकरण किया जाए। उपकरणों के मानकीकरण के लिए तकनीकी विशिष्टयां तय की जाएं।
– राजकीय मेडिकल कॉलेजों व चिकित्सा संस्थानों में नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हास्पिटल एंड हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स से एक्रीडिटेशन कराया जाए।
ऑक्सीजन की कमी का जिक्र नहीं
मुख्य सचिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि जेई से बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है और पिछले साल की तुलना में रोगियों की संख्या भी घटी है। इसमें ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से बच्चों की मौत होने का जिक्र नहीं है। 18 अगस्त 2017 तक एईएस के 1223 मामले सामने आए। इनमें से 169 की मृत्यु हुई। यह मृत्यु दर 12.77 फीसदी है जो पिछले साल 2016 में 16.39 प्रतिशत से कम है। जांच के बाद 111 रोगी जेई के पाए गए। इनमें तीन की मृत्यु हो गई।
मृत्युदर 2.70 प्रतिशत है। इसके विपरीत 2016 में जेई के 442 रोगी पाए गए थे। इनमें से 74 की मृत्यु हुई थी। यह मृत्यु दर 16.74 फीसदी थी। इसके अलावा बताया गया है कि वर्ष 2016 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती मरीजों की संख्या 51 फीसदी थी जो इस वर्ष घटकर 43 फीसदी रह गई। इसकी वजह यह है कि पीआईसीयू व ईटीसी में ज्यादा मरीज भर्ती हो रहे हैं।