देश के दक्षिणी छोर पर बसे तमिलनाडु का द्वीप शहर रामेश्वरम श्री राम की पराक्रम भी नगरी है। आज हम इसी अदभुद शहर की सैर करायेंगे।
रहस्यमय है रामेश्वरम
देश के दक्षिणी सिरे पर बसा रामेश्वरम कुदरती हैरानियों के बीच मानवनिर्मित आश्चर्यों को भी समेटे हुए है। रामेश्वरम आज भी एक अबूझ द्वीप की तरह है, जिसकी खोज अभी बाकी है। साफ-स्वच्छ नीला आसमान, दूर-दूर तक आसमान से एकसार होता शांत-नीरव समंदर, सड़क के दोनों किनारों पर बिछे नारियल के पेड़ों की घनी छांव, ढलवा जमीन पर केले के पेड़ों की लंबी-घनी कतारें। चमकीली धूप की बिखरी किरणें। परंपरागत वेशभूषा में यानी घुटने तक लुंगी चढ़ाए घरों के बाहर दिनचर्या में व्यस्त स्थानीय लोग। नीले-पीले हरे रंग की पुताई किए हुए सुंदर-सजावटी अल्पनाओं से सजे छोटे-बडे घर, कार या बस से रामेश्वरम की यात्रा कर रहे हैं तो ऐसे दृश्य किसी चलचित्र की तरह आपको यहां के समाज और वहां की संस्कृति का दर्शन कराते हैं।दक्षिण का बनारस
मदुरै से रामेश्र्वरम की दूरी करीब 169 किलोमीटर है। इसे ‘दक्षिण भारत का बनारस’ कहा है यानी बनारस की तर्ज पर आप यहां जगह-जगह मंदिर और ‘तीर्थम’ यानी पानी के कुंड, कुएं देख सकते हैं। हर छोटे-बड़े मंदिर के प्रांगण में और घरों के बाहर इन कुंओं पर पानी भरते और नहाते, आते-जाते लोग नजर आ जाते हैं। 67 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैले इस छोटे से द्वीप पर बड़ी-बड़ी विचित्रताएं छुपी हैं।‘कलाम स्मारक’
पेईकुरुंबू स्थित मस्जिद प्रांगण के निकट डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय के सहयोग से रिकॉर्ड समय में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे कलाम का स्मारक बनाया गया है। तकरीबन 300 से अधिक मजदूरों की सुबह 7 से रात 9 बजे तक की कड़ी मेहनत से महज 300 दिनों में इसे तैयार कर दिया गया। पेईकुरंबू वही स्थल है, जहां मिसाइल मैन कलाम को ठीक दो साल पहले दफनाया गया था। यहां एक सेंट्रल हॉल है, जिसके ऊपर बना गुंबद दूर से ध्यान खींचता है। यहां कलाम के उन सभी उल्लेखनीय कार्यों की प्रतिकृतियां रखी गई हैं, जो उन्होंने अपने डीआरडीओ के कार्यकाल में पूरे किए थे। हॉल में मनोहारी हरी घास की चादर बिछी है। कहते हैं यह घास दिल्ली से मंगाई गई थी। हॉल अंदर से जितना खूबसूरत है, बाहर भी नारियल के पेड़ और अन्य पेड़ों की हरियाली के साथ एक खूबसूरत लैंडस्केप की रचना करते हैं। यहां कलाम की सात फीट ऊंची कांस्य की प्रतिमा भी है। यहां 45 फीट लंबे और चार टन वजन के अग्नि-2 मिसाइल का प्रदर्शन भी किया गया है, जिसे इस स्मारक का खास आकर्षण माना जाता है। इसका मुख्य द्वार दिल्ली के इंडिया गेट से प्रेरित है। 27,000 वर्ग फीट के क्षेत्र में बना यह स्मारक रामेश्वरम के पारंपरिक आकर्षण को निश्चित रूप से नया आयाम देगा। श्री रामानाथ स्वामी मंदिर
शहर के पूर्वी क्षेत्र में स्थित रामानाथ मंदिर की स्थापत्य कला को देखकर यदि यह कहें कि देश में ताजमहल, लाल किला या कुछ गिनी-चुनी इमारतों को ही हम याद रख पाते हैं तो इसलिए क्योंकि शायद ज्यादातर लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। त्रावणकोर, मैसूर और पुडुकोट्टई आदि के शासकों ने रामानाथपुरम मंदिर के निर्माण में योगदान दिया। यहां ऊंची-ऊंची दीवारें, सुंदर कलाकारी से सुसज्जित स्तंभों की श्रृंखलाएं, बुलंद और उन्नत रूप से सजे गोपुरम यानी प्रवेश द्वार के साथ-साथ विशालकाय नंदी को देखना किसी सुंदर कल्पना के सच होने जैसा है। मंदिर का गलियारा एशिया में मौजूद हिंदू मंदिरों में सबसे लंबा है, जिसमें 12-12 खंभे हैं। यहां दो लिंग की पूजा होती है। कहते हैं कैलाश से श्री हनुमान जो लिंग लाये थे उसे विश्वलिंगम के रूप में पूजा जाता है, जबकि दूसरे को जिसे सीता ने बनाया था, उसे रामालिंगम कहा गया। इस मंदिर में 24 तीर्थम हैं। तीर्थम यानी पवित्र जल के कुंड। इनमें 14 कुंए और टैंक के रूप में मौजूद हैं। ये मंदिर परिसर के अंदर ही हैं। कहते हैं कि यहां स्नान करने वालों के सारे पाप धुल जाते हैं। यह भी एक बड़ा कारण है कि रामेश्वरम आने वालों की संख्या लाखों में होती है। रामेश्वरम बीच
यहां सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ अग्नितीर्थम है। बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित इस समुद्र तट पर बड़ी संख्या में श्रद्घालु स्नान करते हैं। यह स्थान मंदिर परिसर से 200 मीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण हत्या का पाप धोने के लिए यहीं स्नान किया था। वहीं वाटर स्पोर्ट्स के लिए आदर्श रामेश्वरम बीच है। रामेश्वरम आज भी किसी रहस्यमय टापू की तरह है। ज्यादातर इसे धार्मिक पर्यटन के रूप में ही देखते हैं। पर घुमक्कड़ स्वभाव के लोगों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं। जो यहां आए हैं और भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित इस शांत समुद्र वाले बीच पर गए हैं, उन्हें पता होगा कि ये बीच भारत के अन्य लोकप्रिय बीच से काफी अलग हैं। यहां के बीच न केवल वाटर स्पोर्ट्स गतिविधियों के लिए आदर्श लोकेशन उपलब्ध कराते हैं बल्कि सुकून से घंटों बैठने और ध्यान के लिए उपयुक्त माहौल भी देते हैं। रामेश्वरम बीच की सबसे खास बात यह है कि यह भारत की एकमात्र ऐसी जगह है, जिसके बीच उत्तर और दक्षिण मुखी हैं। भारत के दूसरे बीच या तो पश्चिमी या फिर पूर्वी मुखी हैं। इसका अर्थ यह है कि वाटर स्पोर्ट्स गतिविधियों के लिए यहां कभी भी आया जा सकता है। अब तक अगर आप वाटर स्पोर्ट्स के लिए या बीच पर मनोरंजक गतिविधियों के लिए गोवा और मुंबई या किसी अन्य जगह पर जाते रहे हैं तो एक बार रामेश्वरम के इन बीच पर जाकर देखें, आप बार-बार यहां आना चाहेंगे। यहां बीच पर ही नारियल के पेड़ों के छाल और पत्तों से बनी झोपडिय़ों में ठहरना भी एक रोमांचकारी अनुभव हो सकता है। बच्चों के लिए भी इसे एक आदर्श स्थान कह सकते हैं। बच्चे यहां वाटर स्पोर्ट्स के खूब मजे ले सकते हैं। देखें समंदर की दुनिया
यहां के समंदर का पानी बेहद साफ है। पारदर्शी समंदर के फर्श पर तैरती नावों को देखना किसी काल्पनिक दुनिया में खोने जैसा अनुभव देता है। कोई शोर-शराबा, भीड़भाड़ नहीं, जल्दबाजी नहीं। रंग-बिरंगे कोरल रीफ और शांत पानी के समुद्री जीव-जंतुओं मछलियों को यहां वहां आराम से टहलते-दौड़ते देख सकते हैं। चलते-चलते ही कौतूहल पैदा करने वाले समुद्री जीवों को देखना एकबारगी डरा सकता है पर यह रोमांच भी खुश कर देने वाला है। एंजल फिश, स्टारफिश, ऑक्टोपस आदि आपके पीछे-पीछे दौड़ते आ जाएं तो आश्चर्य नहीं! समुद्र के भीतर की अनोखी दुनिया का रोमांच यहां बाहर बीच पर रहकर ही महसूस किया जा सकता है। ये समुद्री जीव जंतु अंडमान या मालदीव के बीच पर पाए जाने वाले जीवों की तरह तो नहीं, फिर भी इन्हें देखना एक आनंददायक अनुभव है। आर्यमन बीच का पानी सबसे साफ माना जाता है। यहीं पास में विवेकानंद मेमोरियल भी है, जहां पर बीच के किनारे-किनारे टहलते हुए ही जा सकते हैं।धनुषकोडि
देवदार और नारियल के ऊंचे-घने पेड़ों से पटे जंगल, दूर-दूर फैला सफेद रेगिस्तान, सडक़ के दोनों ओर समुद्र और अचानक नजर आता है एक उजाड़ नगर। ये है धनुषकोडि जिसकी पहचान ‘भुतहा’ शहर के रूप में की जाती है। रामेश्वरम के पुराने इतिहास, मिथ, रहस्य-रोमांच का सम्मिश्रण मिलता है यहां। शहर से तरकीबन 15 किलोमीटर की दूरी है पर इस पूरी यात्रा के दौरान टूटी-फूटी इमारतें, रेलवे लाइन, दुकानें, पोस्ट ऑफिस, चर्च के उजड़े खंडहरों को देखना अतीत में गुम हो जाने सा अनुभव है। 1964 से पहले यह एक आबाद खूबसूरत शहर था, पर 22 दिसंबर, 1964 की रात यहां अचानक बड़ा चक्रवाती तूफान आया और शहर को लील गया। स्थानीय प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं, ‘हिलोरे लेता पानी देखते ही देखते चलती-फिरती नगरी को अपने साथ बहा ले गया। 1800 से अधिक लोग इस तूफान में मारे गए। उसके बाद इसे उसी उजड़े हुए रूप में ही छोड़ दिया गया है। इसे अब ‘घोस्ट टाउन’ यानी भुतहा शहर के रूप में जाना जाता है। यहां आसपास मछुआरों के छोटे-छोटे गांव बसे हैं। उनमें पिछड़ापन साफ नजर आता है। इस स्थान से श्रीलंका महज 30 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां होने का रोमांच तब और ज्यादा महसूस होता है, जब आपके मोबाइल में इंटरनेशनल रोमिंग का संदेश आता है। यहां शाम ढलने के बाद जाने की मनाही है।रामसेतु
रामेश्वरम के सबसे प्रमुख आकर्षणों में एक रामसेतु भी है। हालांकि यहां तक पर्यटकों के जाने पर स्थानीय प्रशासन की तरफ से रोक है लेकिन धनुषकोडि पहुंचकर आप इसका नजारा देख सकते हैं। दूर से नजर आता है वह रामसेतु, जो रामायण की कहानी का साक्षात प्रमाण हैं। धनुषकोडि और श्रीलंका के बीचोबीच बना यह पुल खुद में एक बड़ा राज है, जिसकी सच्चाई जानने के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी जुटी हुई है और यह साबित भी कर चुकी है कि इसे इंसानों ने ही बनाया था! यह अलग शोध का विषय है, पर पानी के भीतर डूबे इस पुल पर इक्के-दुक्के लोगों को धनुषकोडि से चलते देखना सुखद है। गंधमदाना पर्वतम
इस पर्वत से पूरा द्वीप दिखता है । इसी पर्वत के नाम पर पहले रामेश्वरम को ‘गंधमाधनम’ कहा जाता था। यह द्वीप का सबसे ऊंचा क्षेत्र है। यह शहर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से शहर का पूरा विहंगम नजारा दिखता है। इसका एक और आकर्षण भगवान राम के पदचिह्न हैं, जिसका दर्शन करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पर्यटक आते हैं।