इस बैठक में भारत की तरफ से विदेशमंत्री सुषमा स्वराज शिरकत करने जा रही हैं। समाज विज्ञान की शंघाई अकादमी के केंद्रीय एशियाई मामलों के विशेषज्ञ ली लिफन ने चिंता जताई है कि भारत के एससीओ में शामिल होने से चीन की भूमिका निश्चित ही कमतर होगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि भारत द्वारा चीन की बीआरआई पहल का विरोध आज भी जारी है। ऐसे में भारत आगे भी चीन की अन्य योजनाओं का विरोध कर सकता है, खासतौर पर ऐसी योजनाएं जिन्हें भारत अपने हित में नहीं मानता है।
साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा कि भारत अब एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य है ऐसे में उसे चीन-पाक आर्थिक गलियारे समेत कई मामलों मेंआलोचना का अधिकार है।
भारत एससीओ शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल पब्लिक फोरम के रूप में भी कर सकता है और जरूरत पड़ने पर वह चीनी योजनाओं में उनके पीछे छिपी मंशा पर प्रत्यक्ष सवाल भी कर सकता है।
विशेषज्ञों के हवाले से अखबार ने लिखा कि भारत और पाक के बीच प्रतिद्वंद्विता व क्षेत्रीय मसलों पर अलग-अलग दृष्टिकोण के कारण इस समूह का किसी निष्कर्ष तक पहुंचना आसान नहीं होगा।
वर्तमान में एससीओ की तुलना अमेरिका और यूरोपीय देशों के नाटो जैसे संगठन से की जा रही है। संगठन में चीन, रूस, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान शामिल थे।
जबकि एससीओ में भारत और पाकिस्तान पहली बार पूर्णकालिक सदस्य बने हैं। इनमें भारत का पलड़ा काफी भारी है, जिसकी पहल पर कई देश भरोसा करते हैं।