चीन-भारत सीमा पर दोनों देशों के बीच दो महीने से तनाव बरकरार है। बहुत कम लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया है कि इस पूरी विवाद की शुरुआत एक सड़क से हुई है। वो सड़क जो चीन डोकलाम घाटी में बनाना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन ऐसी सड़क बनाना चाहता है जिस पर 40 टन वजन वाले सैन्य वाहन आ-जा सकें। चूंकि इस सड़क की वजह से एशिया की दो महाशक्तियों के बीच तीखा विवाद शुरू हो गया इसलिए इसकी थोड़ी चर्चा हुई लेकिन एक सड़क ऐसी भी है जिसकी शायद ही कोई चर्चा हो रही हो। ये सड़क है पूर्वोत्तर भारत को थाईलैंड से जोड़ने वाली सड़क।
नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले महीने 1360 किलोमीटर लम्बी सड़क के एक हिस्से को बेहतर बनाने के लिए करीब 1632 करोड़ रुपये आवंटित किए। ब्लूमबर्ग की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार पिछले दो साल में सीमावर्ती इलाकों में सड़क और रेल मार्ग के लिए 29 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा आवंटित कर चुकी है। जिन सड़कों पर मोदी सरकार को विशेष ध्यान है उनमें मणिपुर के मोरे से म्यांमार के तामू से होते हुए थाईलैंड के माई-सोत तक जाने वाली ये सड़क भी शामिल है।
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चीन द्वारा तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा लागत और 68 देशों से गुजरने वाली “वन बेल्ट वन रोड” के निर्माण की घोषणा के बाद भारत द्वारा इन सड़कों के निर्माण कार्य को तेज कर दिया गया है। चीन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से से होकर जाने वाला एक आर्थिक गलियारा भी तैयार कर रहा है। इसे देखते हुए भारत सरकार की चिंता बढ़ गई थी इसलिए उसने पूर्वी एशिया के देशों के संग मिलकर इस इलाके में संपर्क मार्गों बेहतर बनाने की योजना पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया। मोदी सरकार ने “एक्ट ईस्ट” नीति के पूर्वोत्तर भारत में सड़कों और रेल मार्गों के विकास का कार्य शुरू किया।
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ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत-म्यांमार-थाईलैंड फ्रेंडशिप रोड बनाने की योजना 2001 में बनाई गई थी लेकिन इससे जमीनी स्तर पर उतारने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हो सकी थी। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस रोड को कम्बोडिया, लाओस और वियतनाम तक ले जाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इस सड़क को एशियन डेवलपमेंट बैंक से आर्थिक मदद मिल रही है। इस सड़क से भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका लाभान्वित होंगे।