कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है जिसे हम छोटी दिवाली के रूप में भी जानते हैं। इस दिन पर काली माता हनुमान जी और यमराज जी की भी पूजा का विधान है। दरअसल छोटी दिवाली मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है जिसका संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। आइए जानते हैं कि छोटी दिवाली की पौराणिक कथा।
दीपावली हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास पूरा करने के बाद अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाया जाता है। दीपावली से एक दिन पहले के दिन को हम छोटी दिवाली के रूप में जानते हैं, लेकिन क्या आप छोटी दिवाली बनाने के पीछे का कारण जानते हैं। अगर नहीं, तो यहां पड़े छोटी दिवाली मनाने के पीछे का कारण।
यह पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भौमासुर नाम का एक राक्षस जिसे नरकासुर भी कहा जाता है, उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था। उसने अपनी शक्तियों के कारण कई देवताओं पर भी विजय पा ली थी। क्योंकि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथ ही हो सकती थी इसलिए उसने हजारों कन्याओं का हरण कर लिया था।
इस पर इंद्रदेव भगवान कृष्ण के पास संसार की रक्षा की प्रार्थना लेकर पहुंचते हैं। इंद्र देव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए, भगवान श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आसीन होकर नरकासुर राक्षस का संहार करने पहुचे। भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर डाला।
मुक्त कराईं 16100 कन्याएं
नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्री कृष्ण और सत्यभामा ने उसके द्वारा हरण की गई 16100 कन्याओं को मुक्त कराया। जब यह कन्याएं अपने घर वापस लौटी तो उन्हें समाज और उनके परिवार ने अपनाने से इनकार कर दिया। उन सभी कन्याओं को आश्रय देने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उन सभी को अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार किया।
इसलिए कहा जाता है नरक चतुर्दशी
भौमासुर को नरकासुर के नाम से भी जाना जाता था। चतुर्दशी तिथि पर ही भगवान श्री कृष्ण उसका वध किया था। इसलिए इस तिथि को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसी दिन को छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है।