जमात-ए-इस्लामी कश्मीर में युवाओं में धार्मिक कट्टरवाद का जहर फैला रहा है। इसके लिए जमात के कश्मीर, आजाद कश्मीर और पाकिस्तान चैप्टर घाटी में सक्रिय हैं।IT की छापेमारी पर दिनाकरन ने दिया बड़ा बयान, कहा- PM के इशारों पर हो रही परिवार को तोड़ने की कोशिश
जम्मू-कश्मीर में काम कर रही सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान के इस पैंतरे की काट खोज रही हैं। राज्य और केंद्र सरकार के कई स्तर पर भी इस पर मंत्रणा की जा रही है।
खुफिया एजेंसियों की ताजा रिपोर्ट में जमात की इस तिगड़ी का विस्तार से जिक्र है। मामले की गंभीरता को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, गृह मंत्रालय और केंद्र की ओर से जम्मू-कश्मीर में वार्ता के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधि के स्तर पर बातचीत हुई है।
पाक समर्थक है गुट
मामले से जुड़े अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि गृह मंत्रालय में कट्टरवाद से लड़ने के लिए नवगठित विभाग में इस मुद्दे को काफी प्रमुखता दी गई है।
सूत्रों के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी हिंद देश के संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता में यकीन रखता है और इसका कट्टरवाद से कोई लेनादेना नहीं है।
पिछले साल हिजबुल मुजाहिद्दीन आतंकी बुरहान बानी की मौत पर घाटी में फैली अशांति के बाद जमात-ए-इस्लामी कश्मीर एक बार फिर रडार पर आ गया।
पचास के दशक में गठित यह संगठन शुरू से पाकिस्तान समर्थक रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इसके नुमाइंदे पाकिस्तानी राष्ट्रपति जियाउल हक के कार्यकाल के दौरान भी घाटी में काफी सक्रिय रहे हैं।
उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि इसी समय पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान और कश्मीर के जमात-ए-इस्लामी को एक सूत्र में पिरोया गया था।
सूत्रों के मुताबिक बुरहान जैसे स्थानीय युवकों में धार्मिक कट्टरता पैदा करने में इस गुट का बड़ा रोल रहा है। 2016 में दिल्ली से जम्मू-कश्मीर गए राजनीतिक नेताओं के एक दल ने धार्मिक कट्टरवाद की मजबूत होती जड़ को रेखांकित किया था।
उस दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, माकपा नेता सीताराम येचुरी समेत वरिष्ठ नेताओं ने इसके खिलाफ एक व्यापक योजना की वकालत की थी।