पिछले कई महीनों से जलमग्न हुए बिलासपुर के सांडू मैदान में रंगनाथ के भव्य मंदिर अब नजर आना शुरू हो गए हैं। पानी उतरने के साथ मंदिरों के गुंबद पानी की सतह पर तैरते से नजर आने लग हैं। इस अलौकिक से दिखने वाले नजारे का गवाह बनने को स्थानीय लोगों समेत बाहरी राज्यों से भी लोग यहां खिंचे चले आ रहे हैं।
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भाखड़ा बांध बनने के बाद झील की जद में आए इलाके डूब गए थे। प्रभावित इलाकों के लिए नया शहर बसाया गया, लेकिन मंदिरों को दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया गया। कई मंदिर तो सिल्ट के नीचे दब गए। कुछ मंदिर बचे हैं, जो हर साल छह महीने के लिए जल समाधि ले लेते हैं। गोबिंदसागर झील में जुलाई महीने में पानी चढ़ता है। इसके बाद सभी मंदिर जल समाधि ले लेते हैं।
इसके बाद जनवरी महीने के खत्म होते-होते पानी उतरता है। तब जाकर यह मंदिर पूरी तरह से बाहर निकल आते हैं। इन दिनों पानी उतरने का क्रम शुरू हो चुका है, जिससे मंदिरों के गुंबद पानी की सतह पर दिखने लगे हैं। गोबिंदसागर झील में जलसमाधि से बाहर निकलते मंदिरों के इसी नजारे को देखने के लिए बड़ी संख्या में हर साल लोग उमड़ते हैं। इस बार भी इस अद्भुत नजारों को देखने वालों का तांता लगने लगा है।
मान्यता है कि भगवान शिव के जलाभिषेक के बाद जल जब सतलुज नदी में मिलता था तो उस समय यहां बारिश होती थी। स्थानीय लोग यहां हर साल बड़ा मेला लगाते थे। गोबिंदसागर झील का नाम सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर रखा गया है।
जिला प्रशासन ने मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए हनुमान टिल्ला के पास साइट चयनित की है, लेकिन पुरातत्व विभाग के नाम जमीन नहीं हुई है। विभाग ने साफ किया है कि जब तक जमीन उसके नाम नहीं होगी, तब तक सर्वेक्षण नहीं होगा। जलमग्न हो रहे 28 मंदिरों में से 12 को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा। इसके लिए करीब 30 बीघा जमीन देखी गई है।
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