आरुषि और हेमराज की 16 मई, 2008 को बेहद त्रासद और अजीबो-गरीब हत्या हमारे इस दौर की दर्दनाक दास्तान है: मानवीय दुर्बलताओं और दुखों की, वफादारी और बेवफाई की, प्यार और पूर्वाग्रह की. 2 हत्याएं, 2 किस्से, 2 तरह के सुराग, 2 संभावनाएं, और 2 तरह के संदिग्ध. 5 साल की पड़ताल, 3 तरह के अलग-अलग जांचकर्ता, 15 महीने की सुनवाई, 46 गवाह, 15 डॉक्टर, 4 फॉरेंसिक प्रयोगशालाएं, 7 बार गिरफ्तारी और 3 बार रिहाई.
इन सब के बावजूद अब भी रहस्य. पूरा देश एक शहरी परिवार में इस विचित्र अपराध कथा की हर बारीकी पर नजर रखता रहा है. लेकिन, अंत में ऐसा फैसला आया, जो महज दो मिनट में सुना दिया गया और जिससे सवाल ही ज्यादा खड़े हुए. कोर्ट ने आरुष तलवार के मां-बाप को दोषी मानते हुए 26 नवंबर, 2013 को उम्रकैद की सजा सुनाई. इसके बाद दोनों को डासना जेल भेज दिया गया
जानिए, कत्ल के रात की कहानी
किसी अपराध विशेषज्ञ के लिए मौका-ए-वारदात के विश्लेषण में कठिनाई संदेह के क्षेत्र-मसलन, उसके भूगोल, समाजशास्त्र, इतिहास, लोकप्रिय संस्कृति, या रोजगार के तौर-तरीकों-की जानकारी न होने से होती है. ऐसे में कोई अपराध विशेषज्ञ अपनी जानकारी के अनुसार ही समझदार या नासमझ हो सकता है. आरुषि-हेमराज मर्डर केस में अपराध का विश्लेषण अभी भी परिस्थितिजन्य सबूतों पर ही निर्भर है.
इसलिए समय बीतने के साथ इतने तरह की कहानियां और विश्लेषण आ गए कि इस गुत्थी की हर कड़ी इसकी समीक्षा करने वाले के नजरिए में फिट बैठ जाती है. सीबीआई के मुताबिक, अपराध में मां-बाप की शिरकत का शर्तिया संकेत इससे मिलता है कि वे यह नहीं बता सके कि आरुषि के कमरे का ताला उस रात खुला क्यों था. यही सवाल मां-बाप के जेहन में भी था कि आखिर उस रात चाभी क्यों भूल आए.
जज श्याम लाल ने भी अपने फैसले में लिखा, ‘आरोपियों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया कि आरुषि के कमरे का ताला कैसे और किसने खोला.’ लेकिन नूपुर के मुताबिक, वह उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. उस रात शायद मैं चाबी दरवाजे में ही छोड़ आई थी. मौका-ए-वारदात नोएडा के जलवायु विहार में तलवार परिवार का घर था. तलवार परिवार दो बेडरूम के फ्लैट में दूसरी मंजिल पर रहता था.
इस फ्लैट में कई दरवाजे और खिड़कियां थीं. उसमें लकड़ी के दरवाजे के साथ लोहे के ग्रिल वाला दरवाजा और फिर एक बाहरी लोहे के ग्रिल वाला दरवाजा लगा था. हेमराज का कमरा फ्लैट के अंदर ही मुख्य द्वार के ठीक बगल में था. छत भी तलवार परिवार की ही थी जिसकी सीढ़ी बाहर के कॉमन एरिया से जाती थी. आरुषि का कमरा दाईं ओर उसके मां-बाप के कमरे के बगल में था. उसके कमरे में हर रात बाहर से ताला लगा दिया जाता था.
हेमराज के पास आरुषि के कमरे को छोड़कर सभी चाबियां रहती थीं. यहां कुछ सूत्र खुलते हैं जो आपको परेशान करते हैं. तो, उस रात क्या हुआ होगा? जो पता है, वह इस प्रकार है…
तारीख- 15 मई, 2008
दिन- मंगलवार
समय- रात के 10 बजे से 12.08 बजे तक
जगह- जलवायु विहार, नोएडा
आरुषि तलवार चेतन भगत की नई किताब 3 मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ में पढ़ने की कोशिश करती है. उसके मन में चल रहा है कि सिर्फ दो दिन और स्कूल जाना है और फिर जन्मदिन की बड़ी पार्टी है, 19 मई को देर रात तक जश्न चलेगा. उसकी मां कमरे में ‘इंटरनेट का बटन चालू करने के लिए आती है. राजेश का लैपटॉप नहीं चल रहा था, इसलिए वे आरुषि के कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ देर तक काम करना चाहते थे. राजेश तलवार कुछ ईमेल भेजते रहे और मां-बेटी बातें करती रहीं. फिर वे चले गए और आरुषि के कमरे के दरवाजे में हर रात की तरह बाहर से ताला लगाना भूल गए.
तारीख- 16 मई, 2008
दिन- बुधवार
समय- सुबह 6 बजे
हर सुबह घर में काम करने वाली भारती घंटी बजाती तो हेमराज उसके लिए दरवाजा खोलता था. लेकिन उस सुबह ऐसा नहीं हुआ. वह बार-बार घंटी और लोहे के बाहरी ग्रिल को भी बजा रही थी. आखिरकार नूपुर आंख मलते हुए लकड़ी का दरवाजा खोलती हैं और अंदर के लोहे के ग्रिल से पूछती हैं कि हेमराज कहां है? भारती कहती है, ‘मुझे नहीं पता. क्या आप चाबी नीचे फेंक देंगी?’ जब वह आई तो देखा कि बाहर लोहे का ग्रिल बंद नहीं है.
लेकिन भीतर का ग्रिल दरवाजा बाहर से बंद है. वह जब घर में घुसी तो राजेश और नूपुर रो रहे थे. नूपुर उसके सीने से लग गईं और रोते हुए कहा, ‘आरुषि के कमरे में जाओ और देखो कि क्या हुआ.’ भारती अंदर जाती है और नूपुर जब चादर हटाती है तो भारती को आरुषि के गले पर खून की पतली धार दिखती है. नूपुर रो रही है, ‘देखो हेमराज ने क्या किया.’ भारती पूछती है, ‘पड़ोसियों को बुलाऊं?’ नूपुर कहती है, ‘हां, बुलाओ.’
समय- सुबह 6.50 बजे
बुधवार की सुबह 6.50 बजे तक पुलिस आ जाती है और 8 बजे तक मीडिया. आरुषि का शव पोस्टमार्टम के लिए करीब 9 बजे ले जाया जाता है. कुछ व्यक्तियों की भयंकर भूलों ने सामूहिक गड़बडियों को बढ़ावा दिया. मसलन, यूपी पुलिस के फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट कलेक्टर चुन्नीलाल गौतम की कहानी पर गौर कीजिए. गौतम ने उस सुबह अनगिनत तस्वीरें और उंगलियों के निशान की तस्वीरें खींचीं. फिर भी 24 में से 22 फिंगर प्रिंट की तस्वीरें धुंधली हैं, उनके 23 फोटो निगेटिव से मेल नहीं खाते.
उनके पास छत पर खून से सने फुटप्रिंट की कोई तस्वीर नहीं है, जहां हेमराज का शव मिला क्योंकि वहां काफी भीड़ थी और खून से सनी ह्विस्की के गिलास के फिंगर प्रिंट्स की तस्वीरें किसी के भी फिंगर प्रिंट्स से नहीं मिलतीं. जहां अपराध हुआ वहां की साफ-सफाई बिना सलवट वाली बेड शीट, आरुषि के गुप्तांगों की सफाई के बारे में आश्चर्यजनक रूप से वह मार्च 2010 तक खामोश रहता है. उसके नए दावों ने उसे सबूत मिटाए जाने के प्रमुख गवाहों में शामिल कर दिया.
तारीख- 17 मई, 2008
दिन- गुरुवार
समय- 12 बजे
एक अवकाशप्राप्त डीएसपी के.के. गौतम पड़ोसी तलवार दंपती के यहां जाते हैं. एक पुलिसवाले के अंदेशे पर वे फ्लैट की पड़ताल करने की सोचते हैं. सवाल उठता है कि हेमराज के कमरे में सुला वाइन, किंगफिशर बियर और स्प्राइट की तीन बोतलें क्यों पड़ी हैं? तीन ग्लासों का मामला क्या है? हेमराज का बिस्तर ऐसे मुड़ा-तुड़ा क्यों है कि मानो तीन लोग उस पर बैठे हों? हेमराज के बाथरूम में इतनी पेशाब क्यों है?
एक ही तरीके से काटा गला
वे खून के धब्बे लगी सीढिय़ों से छत पर जाते हैं. वहां यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि छत पर खून से सने हाथ के छाप हैं, कूलर में खून जैसा लाल पानी है और कोने में सड़ांध मारता एक शव पड़ा है, सिर पर वैसे ही निशान हैं जैसे आरुषि के सिर पर थे और दोनों का गला भी एक ही तरीके से काटा गया था. शरीर पर घावों के कई निशान हैं. वे कहते हैं, ‘मई की गर्मी में दो दिन तक कड़ी धूप में रहने के बाद शव की ऐसी हालत थी कि राजेश भी हेमराज की पहचान नहीं कर पाए.’
उलझती चली गई जांच
23 मई की सुबह पुलिस आईजी गुरदर्शन सिंह ने ऐलान किया कि यह ऑनर किलिंग है. उन्होंने कहा कि पिता और बेटी दोनों के चरित्र कमजोर थे. हत्या की रात राजेश देर रात तक जगे रहे क्योंकि इंटरनेट सुबह 3 बजे तक चल रहा था. राजेश ने आरुषि के कमरे में आवाजें सुनीं, हेमराज को आरुषि के बिस्तर पर पाया और गुस्से में दोनों को गोल्फ स्टिक से मौत के घाट उतार दिया. नूपुर ने इस अपराध में उनकी मदद की थी.
मां-बाप को ठहराया दोषी
दोनों ने मिलकर दोनों की गर्दन काटी, हेमराज के शव को घसीटकर छत पर ले गए, मौका-ए-वारदात की साफ-सफाई की, सबूत मिटाए. एम्स में क्लीनिकल मनोचिकित्सा की प्रोफेसर डॉ. मंजू मेहता कहती हैं, ‘अपराध के मामले में जैसा सोचते हैं वैसा कई बार होता नहीं है.’ इस मामले में सबसे बड़ी समस्या मां-बाप के बारे में बनी सोच रही है. खैर, बाद में सीबीआई ने केस की जांच की और पुलिस की तरह तलवार दंपति को ही दोषी पाया.