शिव पुराण की कथा के अनुसार,पूर्व जन्म में कुबेर देव एक गुणनिधि नामक ब्राह्मण थे.ब्राह्मणरूप बालपन में उन्होंने पिता के द्वारा धर्म शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की लेकिन धीरे-धीरे गलत मित्रो की कुसंगति के कारण उनका ध्यान धार्मिक कर्मकांडो से हटकर गलत कार्यों में लग गया. गुणनिधि ने धर्म से विमुख होकर अब आलस्य को अपना साथी बना लिया था.उनकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उनके पिता ने उनको घर से बाहर निकाल दिया. तब गुणनिधि ब्राह्मण असहारा और असहाय होकर भीख मांग कर अपना गुजरा करने लगा.
एक दिन उसे पूरा समय कुछ भी नहीं मिला भूख प्यास से विचलित होकर वह वन की ओर चले गया. वहां उसे कुछ ब्राह्मण अपने साथ भोग की सामग्री ले जाते हुए दिखाई दिए. भोग सामग्री को देख गुणनिधि की भूख और अधिक बढ़ गई तथा वह भी उन ब्राह्मणो के पीछे चलते हुए गुणनिधि एक शिवालय आ पहुंचा. उसने देखा मंदिर में ब्राह्मण भगवान शिव की पूजा कर रहे थे.भगवान शिव को भोज अर्पित कर वे भजन कीर्तन में मग्न हो गए.रात्रि के समय भजन कीर्तन की समाप्ति के बाद सभी ब्राह्मण सो गए तभी गुणनिधि ने चुपके से भगवान शिव के सामने रखा भोग को चुराकर भागने लगा. परन्तु भागते समय गुणनिधि का एक पाँव किसी ब्राह्मण पर लग गया तथा वह चोर-चोर चिल्लाने लगा.
गुणनिधि जान बचाकर भागा परन्तु नगर के रक्षक का निशाना बन गया तथा उसकी मृत्यु हो गई. उस दिन महाशिवरात्रि का महापर्व था और गलती से ही सही पर उस दिन गरीब ब्राह्मण गुणनिधि से उस व्रत का पालन हो गया जिसके शुभ फल स्वरुप वह अगले जन्म में वह कलिंग देश का राजा बना.अपने इस जन्म में गुणनिधि भगवान शिव का परम भक्त था वह सदैव भगवान शिव की भक्ति में खोया रहता. उसकी कठिन तपस्या को देख भगवान शिव उस पर प्रसन्न हुए तथा उसे वरदान स्वरूप यक्षों का स्वामी तथा देवताओ का कोषाध्यक्ष बना दिया.