नवाब आसिफुद्दौला के जमाने में स्थापित लखनऊ के प्राचीन कल्याण गिरि मंदिर की दूर-दूर तक ख्याति है। बाबा की महिमा इस कदर है कि यहां भक्तों को मनौतियां नहीं मांगनी पड़ती, बाबा खुद-ब-खुद उनकी मुराद पूरी कर देते हैं। खासकर सावन के महीने में इस मंदिर में पूजा का खास महत्व है। 
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बताते हैं कि नवाबी दौर में हरिद्वार से एक साधु कल्याण गिरि यहां आए और गोमती के किनारे आसन लगा लिया। एक अमरख के पेड़ के नीचे उन्होंने महादेव की प्रतिमा स्थापित की और उनकी पूजा-अर्चना कर पेड़ की खट्टी अमरख ग्रामीणों में बांट दी, लेकिन ये आम सी मीठी हो गई।
इसके बाद बाबा का नाम दूर-दूर तक फैल गया। चर्चा जब नवाब तक पहुंची तो वहां से भी लोगों का आना शुरू हो गया। नवाब की तरफ से उनका मान-सम्मान करते हुए उन्हें विराजने के लिए नदी के किनारे उसी टीले के आसपास की तमाम जगह दे दी गई।
कालांतर में यही मंदिर पुराने लखनऊ में ठाकुरगंज कल्याण गिरि के नाम से संवरा। आज यहां अखाड़ा परंपरा के तहत पुजारी और महंत नियुक्त होते हैं।
वर्तमान में मंदिर की देखभाल महंत बाबा सुमेरु गिरि करते हैं। गुजरात के गिरनार पर्वत के महंतों का बराबर यहां आना-जाना लगा रहता है।
मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत के मंदिरों की तर्ज पर आज भी जारी है। महाशिवरात्रि पर नगर की सबसे भव्य शिव बारात निकलती है, जो करीब डेढ़ से दो किमी. लंबी होती है। सावन के दौरान हर सोमवार को दिनभर रुद्राभिषेक व शृंगार के दौर चलते हैं। बाबा का मुख्य अरघा रजत आच्छादित है।
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