नवरात्रि एक लोकप्रिय भारतीय त्यौहार है। यह लगभग पूरे भारत में अनेक रूपों में मनाया जाता है। देवी (दुर्गा, काली या वैष्णोदेवी) के भक्त नवरात्रि की अष्टमी या नवमी को छोटी लड़कियों की पूजा करते हैं। कन्या पूजा में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
छोटी लड़कियों की पूजा करने के पीछे बहुत सरल कारण छिपा हुआ है। आपके अंदर या तो आपका अहंकार रह सकता है या भगवान। अहंकार और भगवान एक साथ नहीं रह सकते। जब आपके अंदर से अहंकार पूरी तरह निकल जाता है तब आप दैवीय उर्जा का स्वागत करते हैं। भक्ति के मार्ग का उद्देश्य है कि अपने अहंकार को भगवान के सामने छोड़ दें तथा अपने जीवन का नियंत्रण भगवान के हाथों में दे दें।
दूसरी ओर, जब आप भक्ति के मार्ग पर होते हैं तो आपको अपना अहंकार त्यागने के लिए किसी माध्यम, माफ़ी या अवसर की आवश्यकता होती है। कंजक पूजन ऐसा ही एक अवसर है जो साल में दो बार आता है(शरद नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि)। आइए थोड़े विस्तार में चर्चा करें।
नवरात्रि में छोटी लड़कियों की पूजा क्यों की जाती है:
1. सम्पूर्ण विश्व शिव और शक्ति का स्वरुप है। छोटी लडकियां मासूम और शुद्ध होती हैं। वे मनुष्य के रूप में देवी के शुद्ध रूप का प्रतीक हैं। हिंदू दर्शन के अनुसार एक कुंवारी लड़की शुद्ध बुनियादी रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है। मूर्ति की पूजा से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा करके देवी की शक्ति का आह्वान किया जाता है।
हालाँकि छोटी बच्चियों का निर्माण भी देवी ने किया है। छोटी लड़कियों में स्त्री ऊर्जा चरम होती है। इसके अलावा उनमें अहंकार नहीं होता और वे मासूम होती हैं। अत: इस बात की बहुत अधिक संभावना होती है कि कन्या पूजा के दौरान आप इन छोटी लड़कियों में देवी माता की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
यह सब उस क्षण में आपके विश्वास, भक्ति और पवित्रता पर निर्भर करता है। यह इस तथ्य पर भी निर्भर करता है कि नवरात्रि के दौरान आप कितने समर्पण के साथ देवी माता को याद करते हैं। यदि छोटी लड़कियों की पूजा करते समय यदि आप समग्र भाव से उनमें देवी का स्वरुप देखें या स्वयं को पूर्ण रूप से उनके चरणों में समर्पित कर दें तो आपको लगेगा कि आपने देवी के चरण छू लिए हैं।
कन्या पूजा एक अवसर है जब आप छोटी बच्चियों के रूप में देवी की पूजा कर सकते हैं। एक भक्त के रूप में आपके पास विश्वास, पवित्रता और समर्पण होना चाहिए। पूजा के दौरान उन्हें लड़कियों के रूप में न देखें। अत: सभी धार्मिक संस्कार जैसे उनके पैर धोना, उन्हें बैठने के लिए आसन देना, मन्त्रों का उच्चारण, उन्हें हलवा, पूरी, काले चने की सब्जी और मिठाइयां खिलाना आदि भक्ति और आदर से करें।
2. नवरात्रि के दौरान देवी की शक्ति चरम सीमा पर होती है। नवरात्रि के पहले देवी आराम करती हैं क्योंकि नवरात्रि के दौरान वह बहुत अधिक सक्रिय रहती है। बहुत से मंदिरों में देवी को आराम करने दिया जाता है, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के सोलापुर में स्थित तुलजापुर देवी का मंदिर। इस दौरान अधिकाँश हिंदू देवी को याद करते हैं तथा भक्ति में डूबे रहते हैं।
अत: वातावरण देवी माता के प्रति भक्ति तथा ऊर्जा से भरा हुआ रहता है। बंगाल में यह विशेष रूप से होता है जहाँ दुर्गा पूजा बहुत भक्ति के साथ की जाती है। इस सामूहिक उर्जा के कारण जिसमें करोड़ों हिंदू सहभागी होते हैं, किसी भी भक्त को स्वयं को माता के प्रति समर्पित करना तथा इन छोटी बच्चियों में जिनमें अहंकार नहीं है, देवी के स्वरुप को देखना बहुत आसान हो जाता है। तो यदि आप भक्ति के मार्ग पर हैं और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यदि आप माता के भक्त हैं तो कन्या पूजा को पूरी ईमानदारी से करें औपचारिकता से नहीं।