दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों ने एक बच्चे के पैर की उंगलियों को उसके हाथ में लगाने में कामयाबी पाई है. नेपाल मूल के 10 साल के बच्चे वीरेंद्र सिंह के पैर की उंगलियों को उसकी धमनियों के साथ दाहिने हाथ में प्रत्यारोपित किया. इस सर्जरी को टो टू हैंड ट्रांसफर का नाम दिया गया है. बता दें कि वीरेंद्र सिंह ने एक हादसे में अपने हाथ की उंगलियां गंवा दी थी.गोल्ड मैडलिस्ट डाक्टर ने एनेस्थीसिया का इजेक्शन लगाकर कर ली आत्महत्या, मचा कोहराम!
जटिल थी सर्जरी, फेल होने पर पड़ सकता था मानसिक आघात
अस्पताल के मुख्य परिचालन सर्जन डॉ राकेश कैन ने कहा, “यह एक बहुत ही जटिल सर्जरी थी . इसके विफल होने से रोगी को मानसिक आघात का सामना पर पड़ सकता था. मरीज अब जोड़ी गई उंगलियों से बहुत हद तक नियमित कार्य कर सकेगा. वहीं, पैर की उंगलियों को निकालने के बाद भी उसे चलने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
वीरेंद्र ने कैसे गंवाई थी अपनी उंगलियां?
यह घटना तब हुई जब वह स्कूल से लौटने के बाद एक पारिवारिक समारोह के लिए तैयार हो रहा था. जब वह नहाने के लिए गया तब बिजली के करंट की चपेट में आकर उसके हाथ पूरी तरह से खराब हो गए थे. इस घटना में उसका पूरा शरीर में जल गया. गैंगरीन होने की आशंका को देखते हुए डॉक्टरों ने तुरंत उपचार किया. उसकी हथेलियां काट दी गई थीं. इस घटना के बाद से उसका पढऩा-लिखना तो दूर बच्चा सामान्य कार्य करने में भी मुश्किल हो गया. इस घटना के बाद वीरेंद्र के पिता ने घर से सभी प्रकार के बिजली के उपकरण निकाल दिए.
पेन पकड़ने और पढ़ने की उत्सुकता
वीरेंद्र के पिता ने कहा, ”मेरा बेटा पढ़ाई में बहुत अच्छा है. वह जब क्लास 1 में था, तब उसे इस दुर्घटना का सामना करना पड़ा. उसकी जिंदगी बहुत ही मुश्किल हो गई थी. वह कुछ भी करने में असमर्थ था.” उन्होंने बताया, ” मैंने एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटे. उसके बेटे की पेन पकड़ने और पढ़ने की उत्सुकता उसे रात में सोने नहीं देती थी.”
जल्द ही पेन पकड़ कर लिख सकेगा वीरेंद्र
उन्होंने कहा, “मैं चाहता था कि किसी तरह मेरा बच्चा पेन रखने और लिखने में सक्षम बने.” उन्होंने बताया, ”मैं वीरेंद्र को सात महीने पहले सफदरजंग अस्पताल ले आया था. यहां डॉक्टरों ने पैर की उंगलियां हाथ में प्रत्यारोपित करने का प्लान बनाया.” उन्होंने कहा कि उनका बेटा जल्द ही लिखने में सक्षम हो जाएगा.
सात से आठ महीनों के लिए करानी होगी जांच
सफदरजंग अस्पताल के बर्न और प्लास्टिक सर्जरी यूनिट के प्रमुख प्रो. डॉ आरपी नारायण ने मेल टुडे को बताया, “रोगी को कम से कम सात से आठ महीनों के लिए जांच करानी होगी. फिजियोथेरेपी भी करानी होगी.
बता दें कि विभाग संस्थान हैंड ट्रांसप्लांट प्रोग्राम लाने की प्रक्रिया में है क्योंकि बिजली से जलने की दुर्घटनाओं के कारण बड़ी संख्या में मरीज़ अपने हाथ खो देते हैं.