31 मार्च 17…जैसे कल की पोस्ट पर एक भाई जी ने प्रश्न किया, वैसा ही प्रश्न मैंने भी, कल की चर्चा के आगे श्रीगुरु जी से किया था। मैंने उनसे पूछा, “आपने कहा कि मोक्ष के बाद कुछ समय के लिए आत्मा -परमात्मा में विलय हो जाती है पर अधिकांशतः तो यही पता है कि मोक्ष मतलब जीवन-मृत्यु के आवागमन से मुक्ति ; यह कुछ समय वाला , क्या रहस्य है, इसे सुलझाइए….”।
श्रीगुरु जी बोले – “लोग ठीक जानते हैं – मोक्ष का मतलब जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति ही है परंतु यह मुक्ति अधिकतम एक मनवंतर के लिए ही होती है….”
“यह मनवंतर क्या होता है?” मैं अधीरता से बीच में ही बोल पड़ी।
“एक मनवंतर में चार युग होते हैं, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर, कलयुग….इन चार युगों के बाद प्रलय आती है… सब कुछ समाप्त होकर फिर नव निर्माण होता है…और यह प्रलय भी एकदम अचानक से नहीं आती है, जो भी भूकंप, बाढ़, landslide इत्यादि की घटनाएं होती हैं, वह mini प्रलय ही हैं। तो कोई भी आत्मा जिसे मोक्ष मिलता है, वह अधिकतम एक मनवंतर के लिए मिलता है ….
कुछ आत्माओं को कुछ बरसों के बाद या एक युग के बाद, काल द्वारा, मनुष्य द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों को ठीक करने के लिए शरीर धारण करना पड़ता है, उनका उद्देश्य ईश्वर तय करके भेजता है…. इसलिए permanent मोक्ष जैसी कोई चीज़ नहीं होती…. हाँ एक युग या एक मनवंतर इतनी बड़ी अवधि होती है कि वह permanent जैसी ही लगती है… अब आप समझीं….?” श्रीगुरु जी ने मुझे समझाते हुए पूछा ।
“जी….बिलकुल ….पर एक प्रश्न और….हमें कैसे पता चलेगा कि यह हमारा अंतिम जन्म है और हमें मोक्ष मिल जायेगा?”
जो उत्तर मिला, वह कल…..