16 अप्रैल 17….आज मैं आपको एक बहुत पुराना किस्सा बताती हूँ। बात तब की है जब आश्रम को स्थापित हुए दो साल ही हुए थे। कुछ जुनूनी लोग श्रीगुरु जी को मिले जो अक्सर देश पर चर्चा करते थे पर उनका जुनून सिर्फ बातों में था और ऐसा जुनून किस काम का, जो सिर्फ planning करे और जब काम का वक़्त आये तो सारी देशभक्ति आलस्य की भेंट चढ़ जाये….।

अब जो लोग श्रीगुरु जी को करीब से जानते हैं, वे इस बात को भी जानते ही होंगे कि श्रीगुरु जी स्वयं ही विचारों की खान हैं पर विनम्र इतने कि दूसरों के ideas को बड़े उत्साह से सुनते हैं। तो वो जुनूनी लोग श्रीगुरुजी से अक्सर कहा करते थे “आप तो बस आदेश करो, हम देश के लिए जान भी दे देंगे”। एक दिन ये बहुत खीझ गए और बोले, “देश के लिए जान देने के दिन गए, अब देश के लिए जीने का समय है…तो पहले समय से ,दिए हुए काम तो , शिद्दत के साथ करिये, paper work के साथ, field work करिये, …खाली ज़बानी जमा-खर्च से कुछ नहीं होना”।
…..वो दिन और आज का दिन…
जुनून भी काफूर हो गया और वे लोग भी….
सच ही तो कहा आपने अब देश को मानसिक दारुण्य (ग़रीबी) से स्वतंत्र कराना है और ये बंदूक चलाने से नहीं, देश के लिए productive काम करने से होगा….वह भी अनुशासन ,ज्ञान, तर्क और पूरे होश के साथ…
कहिये …आप सहमत हैं क्या??
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