25 मार्च 17…..आज आश्रम में श्री राम व माँ सीता पधारे । दोपहर तक़रीबन 12:30 बजे माँ सीता व श्री राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई और फिर अखंड रामचरित मानस पाठ प्रारम्भ हुआ।
पाठ प्रारम्भ कराके श्रीगुरुजी ज्योतिष कक्षा के orientation programme के लिए चल दिए और मैं उनके साथ। गाड़ी में बोले, “आज मुझे पूर्णता का एहसास हो रहा है” । मैंने आश्चर्य से पूछा – “आज क्यों पूर्णता….कैसी पूर्णता…मतलब….”
बोले – “देखिये….हम आश्रम के लोग शुरू से ही राम राम कहते आ रहे हैं पर राम-सीता की स्थापना आज हुई। कहीं कुछ अधूरा था….आज पूर्ण हुआ। ” मैंने इस बात का अनुमोदन किया। वो आगे बोले, “जानती हैं….राम और कृष्ण दोनों ने ही धर्म की स्थापना की, व्यभिचारियों का नाश किया पर दोनों में एक अंतर है, ….”
“क्या”
” कृष्ण ने उपदेश दिए….राम ने उपदेश नहीं दिए। उनके जीवन की हर घटना एक उदाहरण है। शबरी के बेर खाना, निषादराज के संग भोजन करना, केवट को गले लगाना …. सारे ही उदाहरण यह कहते हैं कि राम सामाजिक समता में विश्वास करते थे, किसी में कोई भेद नहीं, कोई ऊँचा नहीं, कोई नीचा नहीं….और हमने क्या किया राम को ही बाँट दिया….”
कहकर ये उदास हो गए….
राम सीता के आगमन का उत्सव और राम-भक्त के मन में राम की पीड़ा…
राम ही दूर करें…