26 मार्च 17….आज आश्रम में फूलों संग होली उत्सव चल रहा था….पर मेरा मन उस आनंद में रम नहीं पा रहा था…. सो, मैं कार्यक्रम से उठकर भीतर आ गयी … जानते हैं क्यों ?…इस कार्यक्रम के ठीक पहले श्रीगुरुजी ने नव् संवत्सर के बारे में बताया।
वे बोले जो इस संवत्सर में साधारण- सरल बना रहेगा, वही विलक्षणता प्राप्त कर जाएगा। आगे उन्होंने बहुत कुछ कहा पर कानों को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था …. मन उसी वाक्य में अटक गया था …कितनी छोटी सी बात सरलतम तरीके से कह दी आपने….
जब आप बोल रहे थे, कुछ लोग लिख रहे थे, आपकी कही हुई बात को नोट कर रहे थे…. पर क्या उस copy को खोलेंगे दुबारा , कुछ लोगों ने चेहरे से आत्मविश्वास दिखाया कि वे दिमाग में नोट कर रहे हैं ….मुझे डर है कहीं कपूर की तरह, आत्मविश्वास के साथ, उनके दिमाग से वो बातें भी न उड़ जाएं।….पर….साधारण-सरल हम हो पाए या नहीं, यह पहचानने के लिए आईना देखना पड़ेगा …..ऐसा आईना मिल भी गया तो खुद को देख कैसे पाएंगे…..
….मुखौटे बहुत मज़बूती से चिपके हैं….
बाहर ,लोग उत्सव के लिए मुझे पुकारने लगे…और रंग में भंग डालना मुझे अच्छा नहीं लगता….सो मैंने भी मुखौटा पहन लिया………..
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