28 अप्रैल 17… ( श्रीगुरुजी अपने कक्ष में ) मैंने पूछा,” शनि यदि ग्रह है, तो इसको देवता क्यों कहते हैं? “
” इसके लिए आपको देवता, भगवान, ईश्वर के बीच का अंतर समझना होगा… फिलहाल यह जानिए कि जो भी कुछ देता है, उसे देवता कहते हैं, जैसे सूर्य देव, वरुण देव इत्यादि …देवता का अर्थ भगवान नहीं है, ये कम से कम70- 75 हज़ार साल पहले की शब्दावली है जो तब इसी अर्थ के लिए प्रयुक्त होती थी, आज देवता कहते ही हम serials की वजह से कल्पना करने लगते हैं कि देवता …मतलब …मुकुट पहने बादलों से पुष्प वर्षा करने वाले अलौकिक लोग ….” ये हंसते हुए बोले।
“पर शनि हमें देता क्या है ?” मैंने और clarity के लिए पूछा ।
“देता है ना, …..अपना aura, अपना प्रभाव, अपनी radiations, अपना नीला प्रकाश…” ये अपनी किताबें ठीक करते हुए बोले ।
” ओहो!कहाँ से कहाँ….अर्थ से अनर्थ पर आ गए हम….देवता वाली बात तो जी बिल्कुल clear हो गयी… पर हम शनि से इतना डरते क्यों हैं ?” मैं बोली।
( किताबें तो उन्होंने side में कर दीं ) ” ग्रह कोई डरने की चीज़ नहीं है …पहले लोग डरते भी नहीं थे , ये तो धीरे- धीरे जब मनुष्य में लालच बढ़ने लगा, महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी, अपना वर्चस्व स्थापित करने की भूख बढ़ने लगी…और इधर लोगों ने अपने शास्त्रों को पढ़ना-समझना बंद कर दिया तो कुछ तथाकथित विद्वान मन-गढ़न्त कहानियां बनाकर, देवता का हौआ बनाकर, अपनी जेबें भरने के लिए, देवता के agent बन गए और हमारी अज्ञानता का जी भर फायदा उठाने लगे। बिना डराये ये काम बनता नहीं… सो हमें खूब डराया …और हम डर गए…”, ये डरने की acting करते हुए बोले। ” जी …जी..पहले भी आप बता चुके हैं कि हम डर के मारे ही तो कभी वैभव लक्ष्मी, तो कभी संतोषी माँ को अपने पूजा घर में add करते रहते हैं, उनसे प्रेम है, इसलिये थोड़े ही न पूजते हैं, बल्कि इसलिए कि शायद वो मुराद पूरी कर दें,…यही रहता है दिमाग में…. । अच्छा, ये बताइये कि फिर हमें शनि के उपाय फलते कैसे हैं? ”