यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप किसकी प्रार्थना कर रहे हैं। प्रार्थना में प्रयोग करे जाने वाले शब्द, प्रतीक और अनुष्ठान किसी धर्म विशेष के द्वारा दिए गए हो सकते हैं परंतु प्रार्थना उन सबसे परे होती है। वह भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर घटित होती है और भावनाएं शब्द और धर्म के परे हैं। प्रार्थना के कृत्य ही में परिवर्तन लाने की शक्ति होती है। प्रार्थना सच्चे दिल से करें। और दिव्य शक्ति के साथ अपनी चालाकी दिखलाने का प्रयत्न नहीं करें। अधिकतर आप अपना बचा हुआ समय पार्थना को देते हैं, जब आपके पास और कोई काम नहीं होता, कोई मेहमान नावाजी नहीं करनी होती है या किसी पार्टी में नहीं जाना होता है, तब फिर आप दिव्यता के पास जाते हो।
ऐसा दिया गया समय बढ़िया नहीं है। आप अपना सर्वश्रेष्ठ समय दिव्यता के लिए निकालें तो निश्चय ही आपको उसका उचित प्रतिफल मिलेगा। यदि आपकी प्रार्थना नहीं सुनी जाती तो वह इसलिए क्योंकि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ समय कभी भी नहीं दिया।