पहली बार नगर निगम बने आयोध्या-फैजाबाद से सपा प्रत्याशी के रूप में सामने आने वाली किन्नर गुलशन बिंदु की पहचान अयोध्या में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में है।
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यह पहला मौका नहीं है, जब बिंदु चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाने जा रही हैं। इससे पहले वह विधायकी और पालिका अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ चुकी हैं। हालांकि दोनों ही बार उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उनके चुनाव लड़ने से सियासी गणित जरूर बिगड़ा।
सपा का साथ भी उन्हें यूं ही नहीं मिला है। 2012 के विधान सभा चुनाव में गुलशन बिंदु के मैदान में उतरने का फायदा सपा के प्रत्याशी तेज नरायण को मिला था। बिंदु को करीब 22 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
उन्होंने पांच बार से बीजेपी के विधायक रहे लल्लू सिंह को हरा दिया था। माना जा रहा था कि किन्नर बिंदु ने लल्लू सिंह के वोटों में सेंध लगा दी। इसका फायदा सपा को मिला। इस बार सपा का साथ मिलने की एक वजह यह भी मानी जा रही है।
इसके बाद पालिका अध्यक्ष पद के लिए भी किन्नर गुलशन बिंदु ने अपनी किस्मन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनाई, लेकिन मामूली वोटों से चुनाव हार गई।
यह तीसरा मौका है जब बिंदु एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। इस बार उन्हें साइकिल का साथ भी मिला है। संभव है अयोध्या में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उनकी छवि और समाजवादी पार्टी का साथ अन्य दलों के प्रत्याशियों के लिए एक कड़ी चुनौती साबित होगा।
अयोध्या में शायद ही ऐसा कोई घर हो जहां बिंदु के पैर न पड़े हों। राजनैतिक दलों के महंगे विज्ञापनों के जरिए प्रचार करने से इतर बिंदु घर-घर जाकर लोगों की समस्याएं सुनती हैं। इसी वजह से उनकी छवि पूरे अयोध्या फैजाबाद में एक नेता के बजाए समाजिक कार्यकर्ता के रूप में है। एक ओर जहां राजनैतिक दल महंगे विज्ञापनों और भारी-भरकम तामझाम के साथ चुनाव की तैयारियों में लगे हैं, वहीं किन्नर बिंदु का प्रचार उनका खुद का जनसंपर्क है। पिछले चुनावों में भी वह बहुत कम खर्च में चुनाव लड़ीं थीं।
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