दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा झूठे दावे करने और उनका बचाव करने पर हैरानी व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि दंड का भय नहीं होने से ऐसा करने वाले अधिकारियों की कोई जवाबदेही नहीं होती है। उच्च न्यायलय ने केंद्र एवं दिल्ली सरकार से कहा कि वे अदालती मामलों से निपटने में चूक होने पर अधिकारियों को जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से नियम बनाएं।
उच्च न्यायालय ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा है कि उसका प्रथमदृष्टया यह मानना है कि जब भी सरकार कोई झूठा दावा करती है, तो इससे इंसाफ की मांग कर रहे वादी के साथ घोर नाइंसाफी होती है। कोर्ट पर भी अनावश्यक दवाब पड़ता है। जस्टिस जेआर मिड्ढा ने 31 पन्नों के आदेश में कहा कि, ‘इन सभी मामलों में सरकार ने इस कोर्ट के सामने झूठे दावे किए हैं, जो कि गहरी चिंता का विषय है। इन सभी मामलों ने इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सजा के डर के बिना इस तरह के झूठे दावे किए जा रहे हैं, क्योंकि झूठे दावे करने के लिए किसी सरकारी अधिकारी की कोई जवाबदेही नहीं होती और सरकार झूठे दावे करने वाले शख्स के खिलाफ शायद ही एक्शन लेती हैं।’
उच्च न्यायालय ने कहा कि इन झूठे दावों के चलते सरकार को भी नुकसान होता है, मगर झूठे दावे करने वाले संबंधित अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि, ‘अगर कोर्ट अधिकारियों के दिए तथ्यों को झूठा या गलत पाती है, तो सरकार को कार्रवाई करने पर विचार करना चाहिए और फैसले की प्रति अधिकारी की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) फाइल में रखी जाए। इससे अदालती मामलों में अधिकारी के उठाए कदमों के लिए उसकी जवाबदेही तय होगी।’
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