अब तक तो हमने सुना था कि राजनीती एक कीचड़ का दलदल है . इसको जितना करीब से जानने की कोशिश करोगे उतना ही अंदर धंसते जाओगे . पर इस बार तो राजनीती ने बेगैरत की सारी हदें ही पार कर दी . दरअसल हम बात कर रहे है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की, जो एक महिला के आंसुओं को देख कर भी हंस रहे थे . आलम ये था कि वो महिला मुख्यमंत्री के पैरो पर गिरी हुई थी . पर मुख्यमंत्री हरीश रावत जी इस बात का आनंद लेकर हंस रहे थे .
महिला की बेबसी पर हँसते रहे सीएम .. गौरतलब है कि ये घटना तब हुई जब उत्तराखंड के हल्द्वानी में सभा चल रही थी और मुख्यमंत्री ने भी उसमे शिरकत थी . उसी समय ये महिला सीएम. के पैरों में आकर गिर गयी . अब बजाय उस महिला को अपने पैरो से उठाने के हमारे सीएम . साहब तो इस बात को लेकर मुस्कुरा रहे थे . कितनी शर्मिंदगी की बात है . केवल इतना ही नहीं वहां खड़े सभी लोग इसे एक तमाशे की तरह देख रहे थे . असल में वन भूमि की पेच के कारण बहुत से स्कूलों को ग्रांट नहीं मिल पा रही थी . जिस कारण वो महिला काफी दुखी थी . इसलिए आहत में आकर उस महिला ने एफटीआई में ही मुख्यमंत्री के पैर पकड़ लिए ताकि वो ये ग्रांट दिलवा दे . हालांकि बहुत से विधायकों ने उस महिला को मुख्यमंत्री के पैरों से हटाने की बहुत कोशिश की पर उसे हटा नहीं पाए . उत्तराखंड के एफटीआई ग्राउंड में ही मुख्यमंत्री एक क्विज प्रतियोगिता देख रहे थे जब वो महिला वहां आयी और उसने ये सब किया . महिला को इस तरह मुख्यमंत्री के सामने रोता देख वहां सभी विधायकों को ही टेंशन हो गयी . तो महिला ने भी स्थानीय विधायक और श्रम मंत्री को आड़े हाथो ले लिया .
महिला ने ब्यान किया अपना दर्द .. वो महिला बिंदुखता की निवासी थी . उसका नाम उमा पांडे था . लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उस महिला की सभी बातों को सुना जरूर पर उसके प्रति कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिया . केवल महिला को आश्वासन देकर ही बात ख़त्म कर दी . फिर वो मुस्कुराते रहे . उनका ऐसा व्यव्हार देख कर सब सत्ते में आ गए . इसके साथ ही महिला ने उन सब स्कूलों और कॉलेजों के बारे में भी बताया जहाँ अब तक ग्रांट नहीं मिल पायी है . महिला का कहना था कि बिंदुखता में ही आदर्श इंटर कॉलेज, जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, हाट कालिका इंटर कालेज, चित्रकूट उच्चतर माध्यमिक स्कूल, दानू मांटेसरी स्कूल और मानवता उच्चतर माध्यमिक स्कूल को अभी तक अनुदान नहीं मिल रहा है . वह करीब 13 साल से पांच हज़ार रुपए की आमदन पर हाट कालिका इंटर कॉलेज में काम कर रही हैं . इसलिए उन्हें आर्थिक तौर पर काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है . तो जब उन्हें पता चला कि सीएम यहां आए हैं, तो वह सीधे उनके पास आ गयी . उमा पांडे ने कहा कि उसने पहले भी कई बार सीएम से मिलने का प्रयास किया था लेकिन उसे सीएम से मिलने नहीं दिया गया .
वाकई क्या सीएम है जिनके पास उस जनता की शिकायत सुनने का समय नहीं, जिस जनता ने अपना मत देकर उन्हें सीएम की कुर्सी तक पहुँचाया है . अगर वास्तव में देखा जाये तो सीएम हरीश रावत को अपने सूबे से कोई मतलब ही नहीं है . इससे पहले भी उनकी ही एक रैली में एक बुजुर्ग की जान चली गयी थी . इतना ही नहीं एक मासूम दलित बच्चे की उंगली तक काट ली गयी . पर सीएम जी को तब भी अपनी जनता की कोई खबर नहीं थी . तब भी वे खामोश रहे . आज इस महिला की तकलीफ पर भी हंस रहे थे . क्या इसलिए जनता इनको चुनती है कि ये उनकी तकलीफों का मजाक उड़ाए . ये सब देख कर लगता है कि हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना कर शायद जनता ने गलती कर दी . आपको क्या लगता है क्या वास्तव में देश में ऐसे ही प्रधानमंत्री होने चाहिए ?