वैदिक काल से भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में सूर्य को स्थावर जंगम की आत्मा कहा जाता है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार प्रत्येक माह के शुक्लपक्ष की सप्तमीयुक्त षष्ठी को भगवान सूर्य नारायण का व्रत करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। सूर्य को जीवन स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। हमारे ऋषियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए विशेष रूप से साधना करने को कल्याणकारी बताया है।
सूर्य उपासना के प्रमुख केंद्र
देश में सूर्य की साधना-अराधना के लिए कई मंदिर हैं। भारत के तीन सबसे प्राचीन सूर्य मंदिरों में पहला कोणार्क मंदिर, दूसरा मार्तंड मंदिर और तीसरा मोढ़ेरा मंदिर है।
देवताओं ने भी की सूर्य की उपासना
सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे।
ज्योतिष के अनुसार सूर्यपूजा का फल
वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य को नवग्रहों में प्रथम ग्रह और पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया है। जीवन से जुड़े तमाम दुखों और रोग आदि को दूर करने के साथ-साथ जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ होता हैं। पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए।