पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तीन दिवसीय दिल्ली दौरे के साथ ही राजनीतिक गलियारे में हलचल शुरू हो गई है. दरअसल, ममता बनर्जी ने दिल्ली में एनसीपी, आरजेडी, शिवसेना, टीडीपी, टीआरएस, बीजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के बड़े नेताओं से मुलाकात की. इसके साथ ही चर्चा शुरू हो गई है कि वह गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रही हैं. यानी वह 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी को परास्त करने के लिए जनता के सामने थर्ड फ्रंट का विकल्प देना चाहती हैं. हालांकि बीजेपी लगातार कह रही है कि मौजूदा वक्त में थर्ड फ्रंट का अस्तित्व आधारहीन है. अगर भारतीय राजनीति के तीन दशक पुराने चैप्टर को पलटा जाए तो ममता बनर्जी की कोशिश को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है.
1984 का चुनाव: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल की थी. इस चुनाव परिणाम के बाद विपक्ष की भूमिका लगभग खत्म हो चुकी थी. इस चुनाव में बीजेपी 2 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि आंध्र प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी टीडीपी 30 सीटों के साथ लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी थी. उस दौर में चौधरी देवी लाल की अगुवाई में हरियाणा में भारतीय राष्ट्रीय लोक दल की मजबूत सरकार थी. लोकसभा सीटों के हिसाब से राष्ट्रीय राजनीति में हरियाणा का खास महत्व नहीं था.
भारतीय राजनीति में ताऊ के नाम से चर्चित रहे चौधरी देवीलाल ने बीजेपी सहित सभी क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की थी. कहा जाता है कि देवीलाल ने विपक्षी नेताओं से सिर्फ यही कहा था कि जो भी पार्टियां देश के जिस क्षेत्र में मजबूत हैं, वहां वे पूरी ताकत के साथ 1989 का लोकसभा चुनाव लड़ें. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 197 सीटों पर सिमट गई. वहीं जनता दल 143 और बीजेपी ने 85 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. हालांकि चौधरी देवीलाल खुद प्रधानमंत्री नहीं बन सके थे, लेकिन उनकी इस कोशिश से कांग्रेस हार गई थी.
उसी राजनीतिक घटनाक्रम को ममता बनर्जी ने दोहराने की कोशिश कर रही हैं. ममता के साथ बैठकों के बाद एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल, शिवसेना के संजय राउत, आरजेडी की मीसा भारती आदि नेताओं ने कहा था- मुलाकात में तय हुआ कि हम सब एकजुट होकर अपने-अपने इलाकों में बीजेपी के खिलाफ झंडा बुलंद करें.
बीजेपी वाला रोल कांग्रेस को देना चाहती हैं ममता बनर्जी: छोटे दलों के साथ मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी से मुलाकात की थीं. इस मुलाकात के बाद ममता ने पत्रकारों से कहा कि वह चाहती हैं कि विपक्षी एकता में कांग्रेस भी साझेदार बने. इसके अलावा एम्स में इलाज के लिए आते वक्त आरजेडी चीफ लालू यादव ने एक टीवी चैनल से कहा कि बिना कांग्रेस के विपक्षी एकता के मंच की कल्पना ही नहीं की जा सकती है.
देवीलाल की तरह BJP से सीधी टक्कर ले रही हैं ममता: 1980 के दशक में देशभर में कांग्रेस का वर्चस्व होने के बावजूद चौधरी देवीलाल उस दौर के सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं पर सीधे जुबानी हमले करते थे. मौजूदा दौर में भी विपक्षी नेताओं में ममता बनर्जी एकलौता चेहरा हैं, जो सीधे तौर से बीजेपी पर तीखे हमले करती हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर ममता बनर्जी एक बार फिर से चौधरी देवीलाल की तरह विपक्षी दलों को एकमंच पर लोन में कामयाब हो जाती हैं तो 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद रोमांचक हो सकता है.
ये भी पढ़ें: ममता बनर्जी से लड़ने के लिए BJP ने जिससे की थी दोस्ती, उस दल ने छोड़ा साथ
यूपी-बिहार में विपक्षी एकता की दिख चुकी है ताकत: बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़े तो बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी. हालांकि बाद में नीतीश कुमार इस गठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. ठीक इसी तरह फूलपुर और गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव में सपा और बसपा ने मिलकर साझा प्रत्याशी उतारे तो बीजेपी हार गई. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कह चुके हैं कि अगर सारे विपक्षी दल एक मंच पर आ जाते हैं तो उनकी पार्टी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी. हालांकि शाह को सरकार के कामकाज और पीएम मोदी चमत्कार के दम पर 2019 का लोकसभा चुनाव आसानी से जीतने का भी भरोसा है.