अपने जीवन में धन, तो हर इंसान कमाना चाहता है, इसे कमाने के लिए वह दिन रात मेहनत भी करता है। कुछ लोग अपने जीवन में धन को ही सबसे ज्यादा महत्व देते हैं, लेकिन असलियत में देखा जाए, तो धन मात्र एक ऐसा साधन है, जो आपकी सिर्फ जरूरत को ही पूरा कर सकता है, यह आपको खुशी नहीं दे सकता, यह रिश्ते नहीं निभा सकता, अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि जब इंसान के पास आय से अधिक ज्यादा धन आ जाता है, तो उस धन के साथ उसके पास घमण्ड भी आ जाता है। अगर आप भी धन कमाने कि सोच रहे है, तो यह अच्छी बात है लेकिन धन को कभी भी अपने जीवन का आधार न बनायें। आज हम आपको इसी धन से जुड़े विषय पर एक कथा सुना रहे हैं, जो जीवन में धन के महत्व को बताती है।
बात उस समय की है, जब गुरु नानक देव लाहौर यात्रा पर थे। उस समय एक अजीब नियम लागू था। वो यह कि जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक संपत्ति है वह अपने घर के ऊपर उतने ही झंडे लगाता था। लाहौर में दुनीचंद्र के पास 20 करोड़ रुपए की संपत्ति थी। इसलिए उसके घर की छत पर 20 झंडे फहरा रहे थे। दुनीचंद्र को पता चला कि गुरु नानक जी लाहौर आए हैं, तो वो उनसे मिलने गया। दुनीचंद्र ने गुरुनानक जी से सेवा का अवसर मांगा।
गुरु नानक जी ने उसे एक सुई देते हुए कहा, इसे ले जाइए और अगले जन्म में मुझे वापस कीजिएगा। दुनीचंद्र ने सुई ले ली। लेकिन उसने सोचा कि अगले जन्म में यह सुई मैं कैसे ले जा सकूंगा? वह वापस गुरु नानक जी के पास गया और उसने कहा, मरने के बाद में यह सुई कैसे ले जा सकता हूं। तब गुरु नानक जी ने कहा, जब तुम एक सुई अपने अगले जन्म में नहीं ले जा सकते, तो इतनी सारी संपत्ति कैसे ले जा सकोगे? दुनीचंद्र ने जब यह बात सुनी तो उसकी आंखें खुल गईं। इस तरह उसने सभी दीन-दुखियों की मदद करना शुरू कर दिया।
संक्षेप में- धन का संचय उतना ही करना चाहिए जितनी जरूरत हो। लालच के चलते हम धन का संचय तो करते हैं, लेकिन क्या आप उसे अपने अगले जन्म में ले जा सकेंगे, नहीं। इस तरह सच्ची सीख देकर गुरु नानक जी ने दुनीचंद्र की आंखें खोल दीं।